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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

विकास ने चाय के बाद अपनी जेब से गोल्डन सिगरेट केस निकाला। उसमें से एक सिगरेट निकालकर होठों में दबा ली और फिर उसे माचिस दिखा दी। अब वह आराम से सोफे पर पसरा हुआ सिगरेट के कश ले रहा था। धुयें के छल्ले छत की ओर जा रहे थे। विकास की आंखें भी छत की तरफ लगी थी। वह मन . ही मन आगे का प्रोग्राम बना रहा था।

विकास ने लता को काफी हद तक अपने अहसानों तले दबा दिया था। अब उसका ख्याल था कि कुछ दिनों में लता पूरी तरह उसकी होकर रह जायेगी। विकास इन्ही ख्यालों में खोया था कि उसके कानों में लता की आवाज पड़ी।

"कहाँ खो गये जनाब।" लता तैयार होकर उसके सामने खड़ी थी।

नीले रंग की साड़ी में उसका सौन्दर्य और भी निखर गया था वह आसमान से उतरी अप्सरा सी लग रही थी।

"आज ये बिजली किस पर गिरेगी?” विकास ने पलकें झपकाते हुये कहा।

"ज्यादा बनाओ मत।” लता के चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई।

विकास सौफे से उठ खड़ा हुआ। विकास के बाहर निकलने पर लता भी बाहर आई। फ्लैट का ताला लगाया और फिर दोनों कार की ओर चल दिये। विकास ने आगे बढ़कर कार का अगला दखाजा खोल दिया-

“तशरीफ रखिये मैडम।” विकास ने अनोखे अन्दाज में सिर। • झुकाकर लता से कहा।

लता को उसकी अदा देखकर बरबस ही हंसी आ गई। हंसते.' हुये वह. सीट पर बैठ गई। विकास ने गेट नन्द किया और दूसरी ओर से जाकर स्टेयरिंग सम्भाल लिया। फिर कुछ पलों में गाड़ी हवा से बातें कर रहीं थी।

विकास चुपचाप गाड़ी चला रहा था...हाँ कनखियों से लता को भी देखता जा रहा था पर लता अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी।

लता को कुछ भी पता नहीं था विकास उसे कहाँ ले जा रहा

था। लता ने अपने को हालात के भरोसे छोड़ दिया था। विकास ने उसका हाथ ऐसे बुरे समय में थामा था जब उसके सामने आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं था और आज वह विकास की सेकेटी बन गई थी, इसलिये विकास उसे सही रास्ते पर ले जायेगा। उसके साथ कभी धोखा नहीं करेगा। अब कभी उसकी

जिन्दगी में दुःख नहीं आयेगा जितना दुःख उसके भाग्य में था उठा चुकी है पर वह यह नहीं जानती थी कि भाग्य कभी किसी ने नहीं। देखा है। उसकी आंखों में सुनहरे सपने अंगड़ाई ले रहे थे।

तभी कार एक झटके से रुक गई। लता की विचारे श्रृंखला टूट गई। उसने देखा कार एक क्लब के सामने खड़ी थी। लता ने दरवाजा खोला और उतर गई। अब तक विकास भी उतर चुका था। विकास ने गाड़ी लॉक की और लता के हाथ में हाथ डालकर क्लब की ओर चल दिया।

क्लब के द्वार पर दरबान खड़ा था। दरबान ने विकास को देखा तो लम्बा सलाम बजाया और द्वार खोल दिया। दोनों अन्दर पहुंच गये।

अन्दर घुसते ही लता चौंक गई। आज तक ऐसे वातावरण में वह नहीं गई थी। वह चारों ओर घूर-घूरकर देख रही थी। विकास उसका हाध थामे एक कोने की टेबल पर बैठ गया। उसके सामने ही लता बैठ गई।

विकास को देखते ही अनेक लड़कियों के स्वर एक साथ गंज उठे-"हाय विकास।"

“हाय।” विकास ने सबसे कहा और फिर मीनू देखने लगा।

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