सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
दवाईयां लाकर उसने मेज पर रख दीं फिर एक खुराक लता को उठाकर पिला दी। लता को अपना कोई होश नहीं था और बुखार से उसका शरीर आग की तरह तप रहा था।
विकास ने एक कटोरे में ठण्डा पानी लिया। अपनी जेब से रूमाल निकाला और पानी में भिगोकर लता के माथे पर रख दिया। वह लता के सिरहाने बैठकर बार-बार रूमाल बदलने लगा।
कुछ देर बाद ही रामू फ्लैट पर आ गया। विकास ने रामू को दवाई आदि का सबै काम समझाया और फिर आफिस चल दिया क्योंकि आफिस में कुछ आर्डर के लिये आदमी आने वाले थे।
रामू तन मन से लता की सेवा में लग गया। रामू लता को ' अपनी बेटी की ही तरह प्यार करता था।
मुकेश को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी आसानी से नौकरी पा लेगा। मन ही मन वह काफी खुश था इस समय ड्राइवर के साथ होटल जा रहा था जहाँ सुबह वह अपना सामान
छोड़कर आया था।
मुकेश की नजरों में इस समय लता घूम रही थी। वह सोच रहा था, आज अगर लता उसके साथ होती हो इतनी अच्छी नौकरी की बात सुनकर खुशी से नाचने लगती। अब वह उसके बचपन के एक-एक संपने को सच कर डालता। मुकेश जब भी लता के साथ होता था तब वहं यही महसस करता था कि लतों की आंखों में अनेक सुनहरे सपने छाये हुये हैं। वह हमेशा ऐसी ही बातें करती थी जिन्हें सुनकर मुकेश को डर लगता था कि वह लता के सपने सच नहीं कर पायेगा।
लता एक गरीब परिवार की होते हुये भी सदा सुनहरे सपने देखा करती थी। वह सोचती थी मुकेश के साथ वह बहुत सुखी जीवन बिताये। उसका छोटा सा एक बंगला होगा कार होगी, घर में दो चार नौकर होंगे और वह गज़ करेगी। इन्हीं सपनों को सुनने के कारण ही मुकेश ने उस दिन लता को वापिस कर दिया था। वह चाहता था कि पहले लता के लिये सब कुछ जुटा ले तब उसे दुल्हन बनाकर अपने घर लायेगा परन्तु ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। नौकरी लगने से पहले ही वह लता को खो चुका था।
लता जो एक दिन भी उससे मिले बिना नहीं रहती थी। आज इतने दिन हो गये थे। पता नहीं किन अंधेरों में वह खो गई थी।
गाड़ी होटल के सामने जाकर खड़ी हो गई तब मुकेश के दिमाग को एक झटका लगा। वह ख्यालों की दुनिया से निकल कर वास्तविक दुनिया में आ गया।
मुकेश गाड़ी से उतरा और होटल में घुस गया। कुछ देर बाद वह अपनी अटैची के साथ गाड़ी की ओर आ रहा था।
मुकेश को आते देख ड्राइवर जल्दी से मुकेश की ओर दौड़ा। उसने मुकेश के हाथ से अटैची ले ली और लाकर गाड़ी में रख दी। मुकेश गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी फिर फर्राटे से भागने
लगी।
थोड़ी देर बाद ही सेठजी की कोठी आ गई। सुनीता बाहर बरामदे में ही खड़ी मुकेश का इंतजार कर रही थी। मुकेश को देखते ही सुनीता के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ गई। इतने समय तक मुकेश गाड़ी से निकलकर सुनीता के पास पहुंच गया।
"चलिये जनाब, आपको.आपका कमरा दिखा दिया जाये।" सुनीता के चेहरे पर प्रसन्नता फूट रही थी।
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