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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

देख ली...पर क्या वास्तव में फोटो के ही समान सुन्दर होगी ये लड़की।”

“अगर तुम्हें लड़की पसन्द नहीं होगी...तो तुम्हें मजबूर नहीं किया जायेगा।" विकास के चेहरे पर प्रसन्नता छलक रही थी। वह मन ही मैंने भगवान को धन्यवाद देने लगा। उसका ख्याल था भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है इधर लता को रास्ते पर लाया तो भगवान ने एक और का पैगाम भेज दिया कितना खुशनसीब है वह।

सुनीता गाड़ी चला रही थी उसी के पास मीना बैठी थी। मुकेश पीछे की सीट पर बैठा था। तीनों चुपचाप चल रहे थे पर मीना ऐसी लड़की नहीं थी जो काफी देर तक चुपचाप बैठी रहे। जब काफी देर तक चुप्पी छाई रही तो मीना ने खांसना शुरू कर दिया वह बार-बार खांसे जी रही थी।

सुनीता मीना की आदत अच्छी तरह जानती थी जब मीना को खांसते काफी देर हो गई तो सुनीता जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी। उसकी हंसी ने आग में घी का काम किया।

"ये क्या बदतमीजी है?” मीना ने गुर्राकर कहा।

"तुम हंसने को बदतमीजी कहती हो।” सुनीता ने हंसते हुये कहा।

"तो और क्या कहूं।” मीना ने गुस्से में कहा।

"तो मैं आपके खांसने को क्या कहूं।”

"अरे किसी को खांसी आये तो उसमें हंसने की क्या बात है?"

"यार असली खांसी पर तो स्ट्रेपसल देनी चाहिये..पर नकली खांसी पर अपना दिल हंसने को करती है।” सुनीता ने बड़ी अदा के साथ कहा।

"ये नकली खांसी कैसे होती है.?” मुकेश बीच में ही बोल उठा।

"मुकेश जी नकली खांसी मीना जैसी होती है।" सुनीता ने

मुकेश से कहा।

“क्या...मीना जी यो नकली खांसी है।" मुकेश ने आश्चर्य से कहा।

मुकेश की इस बात पर सुनीता व मीना दोनों हंस पड़ी। मुकेश उल्लू की तरह कभी मीना को देखता कभी सुनीता को . उसकी समझ में नहीं आया कि मैंने ऐसा क्या कह दिया जिस पर दोनों इतना हंस रही हैं।

"अब आया न सफर का मजा...चल रहे थे मुंह फुलाये...जैसे पिकनिक नहीं...कहीं मातम मनाने जा रहे हों।” मीना ने खुशी से कहा।

"इसीलिये खांस रही थीं।” सुनीता ने हंसते हुये कहा।

थोड़ी देर बाद ही उनकी गाड़ी उस स्थान पर पहुंच गई हाँ, का उनका प्रोग्राम था। वह एक सुन्दर जगह थी। वहाँ चारों ओर तरह-तरह के फूल खिले हुये थे। एक ओर झरना 'बह रहा था जिसकी आवाज मन को मोह लेने वाली थी। झरने के आसपास बड़े-बड़े पत्थर पड़े, इये थे जो आपस में काफी मिले हुये थे जो

एक छोटी सी पहाड़ी का रूप धारण किये थे।

सुनीता ने गाड़ी लॉक की फिर तीनों ही अरने की ओर बढ़ गये। तीनों ने एक-एक सामान उठा लिया था। उनके साथ कैमरा भी था जिससे उस प्राकृतिक सौंदर्य को कैद कर सके।

झरने के पास एक चौड़े से पत्थर पर तीनों बैठ गये फिर प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने लगे। मुकेश काफी चुप था हालांकि यहाँ आकर उसे बड़ा अच्छा लग रहा था पर उसे कुछ कमी लग रही थी। मुकेश झस्ने के बहते पानी को निहार रहा था तभी उसे पानी के अन्दर एक आकृति बनती नजर आई। धीरे-धीरे ये आकृति पूरी बन गई। वह लता का चेहरा था मुकेश लता के चेहरे में खो गया। आज कितने ही महीने हो गये थे लता को उससे किछुड़े हुये। इतने दिनों से लता की एक झलक भी नहीं देख पाया। था...कहाँ होगी लता...कैसी होगी...कब मिलेगी...जब लता उसके। पास थी रोज ही वह पार्क में जाया करता था...पर जिस दिन से लता बिछुड़ी थी तब से आज तक पहली बार मुकेश ऐसी जगह पर आया था...यहाँ पर लता की याद पीछा नहीं छोड़ रही थी।

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