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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

“अरे मुकेश तुम कहाँ खो गये।" मुकेश हड़बड़ा गया उसे। जब होश आया तो उसने देखा मीना व सुनीता उसे झकझोर रही थी।

"क्या बात है?” सुनीता ने पूछा।

“तुम कहाँ खो गये थे?" सुनीता ने पूछा।

"कहीं भी नहीं।”

“कमाल है हम दोनों इतनी देर से आवाज लगा रहे हैं पर। तुम बुत की तरह बैठे पानी में देख रहे हो...फिर कहते हो-कहीं भी नहीं।” मीना ने आंखें मटकाते हुये कहा।

"मुकेश साहब...आज हम आपसे एक बात पूछकर ही रहेंगे।” सुनीता ने कहा। "क्या?” मुकेश की समझ में नहीं आया सुनीता क्या कहना चाहती है।

"यही कि आपको इस उम्र में कौन सा रोग लग गया है।" ये स्वर मीना का था।

मुकेश चौंक उठा वह अपने प्यार को मुंह पर नहीं लाना चाहता था। पर वह यह भी जानता था कि ये दोनों लड़कियां बिना जाने उसका पीछा छोड़ने वाली नहीं हैं। फिर रात जो कुछ उसने सुनीता की आंखों में देखा था उसे देखकर वह घबरा गया था।

वह नहीं चाहता था कि सुनीता उसके लिये अपने दिल में कोई भी ऐसी भावना पाल ले जिसके कारण उसे बाद में फ्छताना पड़े।

"रोग... मैंने तो कोई रोग नहीं लगा रखा है।” मुकेश ने चेहरे पर कृत्रिम मुस्कान लाकर कहा। लेकिन वह अपने चेहरे पर छाये भावों को छिपाने में सफल नहीं हो पाया।

“मिस्टर हमसे छपाओ नहीं-नहीं तो. बाद में फछताना पड़ेगा।” मीना ने शरारत भरे शब्दों में कहा।

"अरे बाप रे...ऐसी गुस्ताखी करने की हिम्मत अपने में कहाँ है।" मुकेश बातों में लगाकर उन्हें टालना चाह रहा था।

मुकेश तुम बात का रुख हटा रहे हो...पर सोच लो...तुम्हारी गम्भीरता ने ही हमें ये प्रोग्राम बनाने पर मजबूर किया है।" सुनीता ने कहा।

"क्या...आप लोग इसीलिये मुझे जबरदस्ती लाई हैं।” मुकेश एकदम सहम गया।

“हाँ साहब..इतने दिन से हम आपको किसी के ख्यालों में। खोये हुए देख रहे थे...हमारे अनुभव ने कहा...कि जरूर कुछ दाल में काला है...पर घर में डैडी के कारण कुछ पूछना सम्भव न था...हमने सोचा यहाँ के शांत वातावरण में हम आपमे सन निकला...लेंगे।" सुनीता ने अपना प्लान खोला।

"और मिस्टर मुकेश अभी कुछ देर पहले आपकी हालत बता रही थी...कि आपको किसी हसीना ने जबरदस्त धोखा दिया है और उसके धोने के बावजूद आप उसे दिल से नहीं निकाले सके हैं।” मीना ने कहा।

"नहीं नहीं...वह धोखेबाज नहीं है।" मुकेश चीख उठा।

फिर वह क्या है..देखिये मुकेश साहब अचानक ही आपके दिल से सच निकल गया है...मतलब यह है कि आप किसी की . जुल्फों में फंसे हुये हो..अब इतना और बता दीजिये...वह भाग्यशाली लड़की कौन है।" ये शब्द सुनीता के थे।

मुकेश अपने ही शब्दों के जाल में फंसकर रह गया था।

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