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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

उसकी समझ में नहीं आ रहा था वह अपने को कैसे बचाये। वह पुरुष होकर इन दो लड़कियों के हाथों परास्त हो गया था पर वह . बताये क्या दोषी तो न वह था न ही लता। ये सब तो उन दोनों कि किस्मत का दोष था जो उन्हें जुदा कर गया था।

"बोलिये मिस्टर मुकेश।" मुकेश को चुप देख मीना बोल उठी।

मुकेश ने जब देखा कि अब वह पीछा नहीं छुड़ा पायेगा तो अपनी कहानी अपनी . ही जुबानी कह डालो...सब कुछ बता डाला...मुकेश ने कुछ भी नहीं छिपाया था...कहते-करते उनकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे। मुकेश ने अंत में बताया। “यदि उस दिन मैं लता की बात मान लेता तो शायद आज मैं इस हालत में न होता।"

"आपने लता जी को ढूंढा नहीं।” ये स्वर मीना का था।

“मीना जी मैंने बताया ने दूसरे ही दिन मेरा एक्सीडेंट हो गया था...अस्पताल से छुट्टी पाते ही मैं उसके घर भी गया था।"

"मुकेश मैं तुमसे एक कड़वी बातें पूछने जा रही हैं...आशा करती हूं..तुम बुरा नहीं मानोगे।” सुनीता ने भारी मन से कहा।

"आपने इतना सब पूछ डाला...क्या मैंने बुरा मानी।"

"कहीं लता के पीछे कोई और तो नहीं था।"

"जी...क्या मतलब?” मुकेश चौंक उठा। उसके दिमाग में विकास का चेहरा घूम गया।

“हो सकता है...कि कोई और भी लता के सौंदर्य पर मोहित हो...ये सब उसी ने किया हो...आप किसी की साजिश का निशाना बन गये हों।"

"लेकिन लता तो सिर्फ मुझे ही चाहती थी।"

"वो तो आपको चाहती थी...पर कालेज में उसको चाहने वाले तो और भी होंगे।” मीना ने समझाया।

“हाँ लता के पीछे विकास सदा ही लगा रहा था। मुकेश ने धीरे से कहा।

''ये विकास साहब कौन थे।" मीना व सुनीता दोनों ने एक साथ पूछा।

"ये दिल्ली के एक रईस का इकलौता बेटा है...वह सदा ही लता के पीछे, लगा रहा...पर लता हमेशा ही उससे नफरत करती थी...मैं अच्छी तरह जानता हूं तो विकास के चक्कर में कभी नहीं फंस सकती।” मुकेश के स्वर में दृढ़ता थी।

"मुकेश कभी-कभी मजबूरी आदमी से वह सब करा देती है।

जो वह सपने में भी नहीं करना चाहता...वैसे हम ईश्वर से यही प्रार्थना करेंगे...आपकी लता जी जल्दी ही आपको मिल जाये। मीना ने कहा।

तभी सुनीता की जर चारों ओर दौड़ गई। वहाँ काफी अंधेरा फैल चुका था। बातों में तीनों इतना खो गये थे कि समय का पता ही न चल सका। सुनीता खड़ी होते हुये बोली-"अरे मीना। देखो कितना अंधेरा फैल गया...अब चलना चाहिये।"

सुनीता के साथ ही मुकेश व मीना भी उठ खड़े हुये। तीनों ने अपने-अपने सामान उठा लिये...इस समय पार्क में एक भी व्यक्ति नहीं था। तीनों तेज कदमों से गाड़ी की तरफ चल पड़े।

विकास लता के फ्लैट पर पहुंचा। उसने- धीरे से दरवाजे पर  धक्का दियो। दरवाजे की चटकनी खुल गई। शायद जल्दी में लता चटकनी सीधी ही लगा गई थी। विकास ने हौले से दरवाजा खोला। कमरे में कोई नहीं था पर कमरे की सजावट देखते ही विकास के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई उसे लगा लता काफी देर से। उसका इंतजार कर रही है...विकास ने बहुत ही धीरे से दरवाजा बंद करके चटकनी चढ़ा दी फिर दबे पांव दूसरे कमरे में पहुंचा।

लता सोलह सिंगार किये आंखें बंद करके बैठी थी...चुपचाप विकास लता के पीछे पहुंच गया...फिर एकदम विकास ने लता को अपनी वलिष्ठ बांहों के घेरे में ले लिया।

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