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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

“अंकल उन्होंने कहा है कि आज वो नहीं आ सकेंगे...फिर किसी दिन की तारीख पक्की करके आपको फोन कर देंगे।"

“परन्तु मैंने तो सब तैयारी कर ली थी...हे भगवान ये लड़के वाले पता नहीं अपने को क्या समझते हैं।" सेठजी के चेहरे पर क्रोध व परेशानी के मिले जुले भाव थे।

"अंकल, मैं आपको मतलब नहीं समझा।” मुकेश ने कहा हालांकि अब वह सब समझ गया था।

"बेटा सेठ दयानाथ का एक लड़का है विकास पहली बार जब मैं देहली गया था तो अचानक सेठजी से मुलाकात हो गई थी...बातों ही बातों में पता चला उनका एक लड़का है। जिसका नाम विकास है...मैंने सोचा अपनी सुनीता अब बड़ी हो गई है...घेर वर अच्छा है...सुनीता की बात पक्की कर दी जाये सो उन्होंने आज की तारीख सुनीता को देखने की रखी थी। साथ ही यह भी तय किया था कि यदि लड़का लड़की तैयार होंगे तो साथ ही कुछ रस्म अदा कर दी जायेगी...अब मैंने सब तैयारी कर ली थी और उन्होंने फोन कर दिया, समझ में नहीं आता क्या कारण है।" सेठ जी ने एक ही बार में सब बता दिया।

“अंकल उनका काम क्या है?" मुकेश ने पूछा।

"बेटा करोड़पति है...कई फर्म हैं...हाँ तुम भी तो देहली ही रहे हो...तुम तो अवश्य ही जानते होंगे उन्हें।" सेठजी ने 'मुकेश से पूछा।

"अंकल, इतनी बड़ी दिल्ली के अनेक लोग एक काम व नाम के हों मैं बिना देखे कैसे बता सकता है...फिर वहाँ मैं पढ़ाई के लिये गया था...अपने आस-पास के लोगों के अलावा में किसी को नहीं जानता हूँ।" मुकेश ने कहा परन्तुं मन ही मन वह भगवान। से दुआ मना रहा था कि हे प्रभु ये विकास कोई और ही हो क्योंकि अपने संहपाठी विकास का रूप मुकेश ने अच्छी प्रकार देख रखा था। मुकेश जानता था विकास सुनीता को कभी पति का सुखनहीं दे पायेगा। विकास के साथ शादी करके.सुनीता का जीवन नरक बन जायेगा।

"मुकेश बेटा कहाँ खो गये?” मुकेश को गुमसुम देखकर सेठ जी ने कहा।

“जी...जी...कहीं...नहीं।” मुकेश अपने ख्यालों में इतना खो गया था कि वह ये भी भूल गया कि वह सेठजी के कमरे में उनके सामने बैठा है। उसने सेठ जी से कहा-"फिर अंकल मैं आफिस चलूं।"

"अरे अब जाकर क्या करोगे समय ही कितना है...मैं फोन करके चपरासी से फाइलें यहीं मंगा लेता है...तुम अपने कमरे में। जाकर आराम करो।" सेठजी ने महसूस किया कि मुकेश नार्मल नहीं है परन्तु क्यों  इसको कारण वृह नहीं जान सके परन्तु फिर भी मुकेश की हालत देखकर कुछ सोचने पर मजबूर हो गये।

विकास ने तीन दिन लगातार लता के कमरे में बिताये क्योंकि डैडी से उसने बाहर जाने का बहाना बनाया था। वह जानता था • इन तीन दिनों में सेठ जी बाहर कहीं नहीं जायेंगे और अगर वह शहर में घूमेगा तो हो सकता है किसी ऐसे व्यक्ति की नजरों में आ जायें जो.सेठजी तक पहुंचा दे इसीलिये उसने लता के फ्लैट में ही ये समय बिताने का निर्णय कर लिया था।

अब लता के फ्लैट में उसने अपनी पीने का इंतजाम भी कर लिया था । इन दिनों में एक आध घूट उसने लता को भी पिलादिया था। विकास ने लता को समझाया था कि उसे यदि वह पली. . होकर उसका साथ नहीं देगी तो उसे कोई और पार्टनर बनाना पड़ेगा । उसमें उसे ही नुकसान उठाना पड़ेगा।

लता ये विल्कुल नहीं चाहती थी कि उसके होते हुये विकास किसी और लड़की के साथ घूमे इसीलिये लता ने उसका साथ देने की हामी भर ली थी और जब भी विकास पीने बैठता उसके साथ एक दो घूंट ले लेती। विकास तो यही चाहता था। धीरे-धीरे विकास लता से हर बात मनवाता जा रहा था।

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