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मिस आर - आरंभ

दिशान्त शर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15962
आईएसबीएन :978-1-61301-699-2

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भारत  की  पहली  महिला  सुपर हीरोइन ‘मिस -आर' जो खुद एक बलात्कार पीड़िता और एसिड पीड़िता है लेकिन उसकी ‘औरा पावर’ ने उसे एक नया अवतार दिया है। वो खुद की और लोगों की मदद करना चाहती है...

उनकी दूसरी चीज है थामस अंकल का हर साल वाला लेटर। मैंने आज तक थामस अंकल को न तो देखा है और न ही उनकी आवाज सुनी है, फिर भी वो हर साल पापा को एक लेटर भेजते हैं, जिसमें वो पापा को खुद से मिलने हर साल 1 से 8 मई तक बुलाते हैं। और पापा जाते भी हैं, मुझे अकेला छोड़कर। पापा मेरे जन्म से ही जाते रहे हैं, जब मैं छोटी थी तो एक सप्ताह के लिए मुझे पास की लक्ष्मी काकी के पास छोड़ जाते थे पर अब मैं बड़ी हो गई हूँ तो मैं अकेली ही रह लेती हूँ, खैर...।

और तीसरी चीज वह मिठाई है जो पापा वापसी में लाते हैं और कहते हैं कि यह थामस अंकल ने तुम्हारे लिए भेजी है। पापा को शुगर है तो वह मीठा नहीं खाते हैं, मैं अकेली ही वह मिठाई खा लेती हूँ। काफी अच्छे टेस्ट वाली है। मिठाई के नाम के बारे में पूछने पर पापा हमेशा कहते हैं कि इसका कोई नाम नहीं है क्योंकि यह मिठाई थामस ने खुद बनाई है।

तो किट्टू इन तीनों चीजों के बारे में मैंने कई बार पूछा लेकिन वो मुझे बताते नहीं है और टाल देते हैं.. फिर भी हैं तो वह मेरे प्यारे पापा ही। आज के लिए इतना ही किट्टू,
I love you.

थोड़ी देर बाद घर की डोरबेल बजी। पापा आ गये थे और आज सूट-बूट में थे। पापा जैसे ही सोफे पर बैठे.. कैथरीन ने उनकी तरफ लिफाफा बढ़ा दिया। पापा ने मुस्कुराते हुए लिफाफा ले लिया और उसे फाड़कर, पत्र निकाला, पढ़ा फिर वापस लिफाफे में रखकर कैथरीन की तरफ देखा, जो निश्चित ही नाराज थी।

“हर साल की तरह इस साल भी तुम्हारे थामस अंकल ने मुझे अपने घर पर बुलाया है।” पापा ने मुस्कराते हुए कहा।

“1 से 8 मई, है न” कैथरीन ने चिढ़ते हुए कहा।

“हाँ बेटा”

“इस बार मैं भी .........”

“नहीं, बेटा तुम बोर हो जाओगी”

“मैं बोर नहीं होऊँगी.. मै भी चलूँ?”

“नहीं, बेटा, मैं अकेला ही जाऊँगा”

“ठीक है..ठीक है, आप अकेले ही जाइये, हाँ, मिठाई मत लाइएगा, मुझे नहीं खानी है, गुडनाइट।” इतना कहकर कैथरीन अपने कमरे में चली गई और कमरा बन्द कर लिया। पापा अब लिफाफे के साथ अकेले बैठे थे, अब उनके चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं बल्कि एक भावहीनता व शून्यता तैर रही थी। उन्होंने लिफाफे को टेबल पर रखा। एक गहरी लंबी साँस ली और उठकर अपने कमरे में चले गये।

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    अनुक्रम

  1. अनुक्रमणिका

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