कविता संग्रह >> महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल महामानव - रामभक्त मणिकुण्डलउमा शंकर गुप्ता
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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य
जीवन यात्रा में अनेक साथी मिलते हैं, अंतरंगता भी हो जाती है उनसे। कभी-कभी कुछ दुष्ट, लालची, ईष्यालु और छल-कपट करने वाले भी मिल जाते है, जो धन-संपदा का हरण तो करते ही है, चरित्र हरण का प्रयास भी करते हैं, तथा मौका मिलते ही प्राण हरण करने से भी नहीं चूकते। पवित्र आचरण और सुसंस्कार्यों में पले-बढ़े मणिकुण्डल का साथी गौतम भी बहुत निकृष्ट मानसिकता का व्यक्ति था। उसने प्रयास किया कि द्यूत क्रीड़ा से धन हरण कर लिया जाय पर सफल नहीं हुआ, फिर रूप के बाजार में भटका कर काम जिज्ञासा जाग्रत करके धन हरण का प्रयास किया। किसी अनैतिक प्रतिस्पर्धा में फंसाकर उसने पर्याप्त धन भी वसूल कर लिया तथा निर्जन स्थान पर चलते हुए हत्या भी करने का असफल प्रयास किया। ईश्वर की कृपा से प्राण तो बच गये किन्तु शरीर क्षत-विक्षत तो हो ही गया। नेत्र ज्योति भी नष्ट हो गई। यह संयोग ही था कि श्रीराम भक्त विभीषण देवपूजन के लिए वहां आये और उनकी सहायता से प्राण रक्षा हुई तथा संजीवनी बूटी और विशल्यकरणी नामक औषधि से व्रण रोपण और नेत्र ज्योति भी प्राप्ति हो गयी।
ग्रंथकार ने काम (सेक्स) विषयक विस्तृत विमर्श भी प्रस्तुत किया है, जो अपने प्रकार का महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करने वाला है। जीवन के अनुभव, लोक चेतना तथा शास्त्रीय चिन्तन तीनों आधारों पर भारतीय मनीषा ने श्रृंगार को असाधारण महत्व दिया है। साहित्य में उसकी चेतना में ऊज्ज्वलता आदि विशेषताओं के साथ विष्णु को उसका देवता निरूपित किया गया है। काव्य शास्त्र में उसको रसराज का स्थान प्राप्त है। रति का सम्बन्ध काम से भी रहा है और काम को एक पुरुषार्थ ही नहीं सृष्टि का मूल भी माना गया है। हिन्दी साहित्य का रीति काल तो काम-विषयक श्रंगारी काव्य रचनाओं का मुख्य समय ही था। इंद्रिय संयम के साथ धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष का सेवन उद्दीपन तथा क्रिया व्यापार तक अनेक प्रीति विषयक वर्णन किये हैं।
काम विषयक अनेक श्रृंगारी छन्दों में इस कवि ने प्रतीक्षा, आकर्षण, स्पर्श तथा रूप श्रृंगार के मांसल विम्बों में सुकोमल, स्निग्ध चंचला युवती के मौन निमंत्रण का लज्जा मिश्रित आमंत्रण भी अनुभूति की सुकोमल भावना में अभिव्यक्ति का अधरामृत से कलामय केलि प्रसंग वर्णित किया है। यहां काम केलि के आनन्द रस में निमग्न स्पर्शन के विविध आयामो तक पहुंचने के भी लोक लालच के मनोभावों का कविता में उद्दीपन हुआ है।
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