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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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ताई महाराज यह सब महसूस करने लगीं, किन्तु उन्होंने ट्रस्टियों द्वारा गोद लिए जाने के लिए परिवार के विभिन्न घरानों में की जा रही उपयुक्त लड़के की खोज का विरोध नहीं किया। अन्ततः ट्रस्टियों को हैदराबाद रियासत में उसी परिवार के बाबरे शाखा का एक लड़का पसन्द आ गया। ताई महाराज भी तिलक और खापर्डे के साथ औरंगाबाद गई जहां पांच लड़कों में से एक को चुनना था। उन लड़कों से कहा गया कि ट्रस्टियों और ताई महाराज के साथ वे कुछ दिनों तक ठहरें। भलीभांति छानबीन करने और ज्योतिषियों का परामर्श लेने के बाद जगन्नाथ नामक लड़का चुना गया। औपचारिक रूप से ताई महाराज ने जगन्नाथ के पिता से प्रार्थना की कि वह उसे गोद लेने दें और वह राजी भी ह?ए गए। गोद-विषयक सारे कागजात 27 जून, 1901 को तैयार कर लिए गए। अगले दिन अन्य मित्रों के सामने ताई महाराज ने शास्त्रीय विधि से जगन्नाथ को गोद लिया। इसी समय सारे कागजात पर हस्ताक्षर किए गए और जैसा कि 15 वर्ष बाद प्रिवी काउइल्सल ने निर्णय दिया, वे कागजात 'दरअसल वास्तविक गोद' के निश्चायक साक्ष्य थे।

इसके बाद के सभी समारोह स्थगित कर दिए गए और तय किया गया कि परिवार की बड़ी हैसियत के मुताबिक ही वे पूना में आयोजित किए जाएं। लेकिन पूना लौटते ही ताई महाराज दूसरों के बहकाने में आकर कहने लगीं कि मैंने तो दबाव में पड़कर जगन्नाथ को गोद लिया है, अतः मैं इसे नहीं मानती। नागपुरकर की दादागिरी में उनके नीच परामर्शदाताओं की नीयत यह नहीं थी कि ताई महाराज का भला हो, बल्कि यह थी कि वे उनकी सम्पत्ति हड़प लें। फलतः उनके बहकाने पर ताई महाराज जिलाधीश एच. एफ. ऐस्टन से, जो डेक्कन के सरदारों का एजेण्ट था, अपने को तिलक तथा अन्य दोनों न्यासियों की धांधली से बचाने की प्रार्थना की।

लगता है, एक जवान विधवा की आंसू-भरी कहानी सुनकर ऐस्टन का पौरुष जाग उठा। किन्तु तिलक के विरुद्ध उसने जो कार्रवाई की, उसके पीछे बदला लेने की उसकी भावना ही प्रबल थी। सातारा के एक साधारण-से सम्पादक को देश निकाले का दण्ड देकर वह काफी कुख्यात हो चुका था। इसलिए वह सरकार का कृपापात्र बनने के लिए तिलक को फंसाने का मौका कैसे चुकता? ब्रिटिश शासन में यह कोई नई बात न थी कि कोई न्यायाधीश कार्यपालिका के हाथ का खिलौना बने और सरकार को प्रसन्न करने के लिए अन्याय करे।

ऐस्टन से बढ़ावा मिलने पर ताई महाराज ने 29 जुलाई, 1901 को आवेदन किया कि ट्रस्टियों को प्रदत्त वसीयतनामा रहद्द कर दिया जाए क्योंकि उन्हें एक पुत्र उत्पन्न होने के कारण वह अवैध और निष्क्रिय हो गया था। लेकिन केवल इसी सवाल तक सीमित न रहकर ऐस्टन ने अपने मनमाने ढंग से जगन्नाथ के गोद लिए जाने और उसमें तिलक द्वारा अदा किए गए हिस्से को भी मुकदमे में शामिल कर लिया तथा तिलक से 14 दिनों तक जिरह किया और अभिलेख पर लिखा कि ''तिलक प्रश्नों का सीधा जवाब देने में आनाकानी और टालमटोल करते हैं और बिल्कुल अविश्वसनीय गवाह हैं।''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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