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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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कलकत्ता-अधिवेशन के बाद तिलक ने कांग्रेस वालों को नए दल में लाने के लिए एक जोरदार आन्दोलन छेड़ दिया और इस दिशा में उन्हें केवल फिरोजशाह मेहता का ही नहीं, जो भारत में ब्रिटिश शासन को, दैवी वरदान समझते थे, बल्कि गोखले का भी जबर्दस्त मुकाबला करना पड़ा जिनका गरम दलवालों के प्रति थोड़े अर्से का दिखावटी प्रेम अपनी बिटेन-यात्रा के साथ ही समाप्त हो गया था जहां उन्होंने नए भारतमंत्री (सैक्रेटरी ऑफ स्टेट) लॉर्ड मार्ले से कई बार वार्ता की थी। बनारस के अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में गोखले ने कहा था कि मार्ले को मैं अपना गुरु समझता हूं और इण्डिया ऑफिस में 'बर्क के प्रिय विद्यार्थी, मिल के शिष्य और ग्लैड्स्टन के मित्र तथा जीवनीकार' की नियुक्ति के समाचार से मेरा हृदय पुलकित हो उठा।

लेकिन सच कहा जाए तो गोखले और नरम दल के उनके सहयोगियों को निराश करने में मार्ले को तनिक भी देर न लगी जब उन्होंने स्पष्टतः बता दिया कि यह सोचना मूर्खता है कि उदार दल (लिबरल पार्टी) भारतीयों को कोई भी राजनीतिक अधिकार तुरंत दे देगा। नरम दल वालों को इससे भी जबर्दस्त धक्का तब लगा जब मार्ले ने कहा कि बंगाल का विभाजन एक 'निश्चित तथ्य' है, क्योंकि यह विभाजन राजनीतिक नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुविधाओं की दृष्टि से ही किया गया है। फिर भी उन्होंने नरम दलवालों को सुधार का लाभ दिखलाया। वाइसराय लार्ड मिण्टो को 1 अगस्त, 1906 को लिखे एक पत्र में उन्होंने गोखले से हुई अपनी भेंट का वर्णन इस प्रकार किया था :

''गोखले ने अपने इस अन्तिम लक्ष्य को नहीं छिपाया कि भारत को एक स्वशासित उपनिवेश के स्तर पर लाया जाए। मैंने भी अपने इस विचार को स्पष्ट कर दिया कि अभी बहुत दिनों तक कम-से-कम मेरे जीवन-काल तक तो यह लक्ष्य स्वप्न ही बना रहेगा। मैंने उनसे कहा कि जहां तक उचित सुधारों का सवाल है, 'आज से अधिक उत्तम समय नहीं...।' इस अवसर को आपके गैर-जिम्मेदार मित्र ही नष्ट कर सकते हैं। यदि वे पूर्वी बंगाल में आन्दोलन जारी रखेंगे तो सरकार के लिए आगे कुछ भी करना असम्भव हो जाएगा...। हम लोग वास्तव में सुधार करना चाहते हैं। यदि आपके नेतागण और समाचारपत्र हम जो कुछ कर रहे हैं, उसे न्यून और तुच्छ बताते रहेंगे तथा केवल असम्भव वस्तुओं की ही मांग करेंगे तो सारा बना-बनाया बिगड़ जाएगा।''

मार्ले ने इस पत्र में आगे बताया था कि गोखले तुरन्त तैयार हो गए और उन्होंने भारत-स्थित अपने मित्रों को एक 'अत्यन्त मैत्रीपूर्ण और आशा से परिपूर्ण पत्र' लिखा। इसलिए इसमें आश्चर्य की कोई बात न थी जो ब्रिटेन यात्रा से लौटकर गोखले का विश्वास नरम दल में द्विगुणित हो गया। गरम और नरम दल वालों के संबंध जो बड़ी तेजी से बिगड़े, उसका कारण कुछ हद तक गोखले के दिलोदिमाग में लार्ड मार्ले द्वारा प्रज्वलित आशा की चिनगारी ही थी।

मिल का यह शिष्य अब भी ऊंचे दांव लगाए जा रहा था। मार्ले के भाषणों के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकल सकता है कि उदार दल (लिबरल पार्टी) की ब्रिटिश सरकार भी कंजर्वेटिव दल की सरकारों की भांति ही गरम दलवालों को चुन-चुन कर कुचल देना चाहती थी। नरम दलवालों पर मार्ले ने जो प्रभाव स्थापित कर रखा था, उसके बल पर अगले वर्ष में उन्होंने बड़े उत्साह से कहा :

''जिसने भी इतिहास पढ़ा है, वह जानता है कि अपनी तेजी, लगन, कट्टरता और उग्रता के कारण ही गरम दलवाला नरम दलवाले को पीछे छोड़ जाता है। फिर भी हमारा मत है कि हमारी नीति से नरम दलवाले संतुष्ट न होंगे, मात्र इसी कारणवश यदि हम इस समय सरकार के पक्ष में नरम दलवालों को लाने के लिए जो कुछ कर रहे हैं, उसे नहीं करेंगे तो यह हमारे लिए एक भयंकर राजनीतिक भूल साबित होगी। हम लोगों को चाहिए कि हम नरम दलवालों को अपने पक्ष में लाएं और यदि इस नीति से गरम दलवाले सन्तुष्ट नहीं होते तो न हों इसकी चिन्ता नहीं। हमारी नीति यही रहेगी...। उनमें से कुछ मुझसे नाराज हैं, क्योंकि मैं उन्हें आसमान से उतार कर चांद देने में असमर्थ रहा हूं। बताइए, मेरे पास चांद कहां और यदि होता भी तो मैं उन्हें कैसे देता?''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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