जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
तिलक हवा में महल बनानेवाले ही जीव न थे। वास्तविकता का ज्ञान होने से यह जानते थे कि जहां तक साम्राज्यवादी स्वार्थ का सम्बन्ध है, सरकार बना लेने पर ब्रिटिश उदारवादी (लिबरल) अनुदारवादियों (कंजरवेटिव्स) से भिन्न न होंगे। उन्होंने कहा कि हो सकता है, मार्ले ने 'मिल' से प्रेरणा ली हो, लेकिन मुझे तो उनकी रीति नीति में मिल का प्रभाव नहीं दिखाई देता। राजनीति में केवल स्वार्थ का ही स्थान है और वह स्वार्थ साधन के हेतु सिद्धान्त बघारती है। उन्होंने लिखा था :
''हम अपने पाठकों पर ही इसका निर्णय छोड़ते हैं कि मार्ले के कथन में निहित बुद्धिमता की प्रशंसा होनी चाहिए या हमारे उन अदूरदर्शी नेताओं की निन्दा जो मार्ले के कृपाकांक्षी रहे हैं। मार्ले का भाषण ब्रिटिश कूटनीति के अनुकुल ही है। बंगाल के विभाजन के सम्बन्ध में उनकी दलील इतनी मूर्खतापूर्ण और आग भड़काने वाली है कि हमें यह कहना पड़ता है कि लगता है कि भारत-मन्त्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) बनने के फौरन बाद ही उन्होंने अपनी दार्शनिक बुद्धि को गिरवी रख दिया है। भारत मन्त्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) अंग्रेजी नौकरशाही का मस्तिष्क और जबान होती है। तो क्या आप समझते हैं कि जब सारी नौकरशाही, सारी अंग्रेज जमात आपके विरुद्ध है तो भारत-मन्त्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) उन सबकी बात न मानकर आपको अधिकार दे देगें।''
तिलक की यह चेतावनी सही साबित हुई, क्योंकि एक तरफ जहां सुधार-योजना लागू करने में जानबूझकर अनुचित ढंग से देर की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर मार्ले की मौजूदगी में देश दमन-चक्र में पिस रहा था और वह इसे रोकने में सम्भवतः असमर्थ थे। यह कोई पहली बार की ही बात नहीं थी जो किसी ब्रिटिश राजनेता ने अपने मुंह से निकले वचनों को तोड़ा था। लाला लाजपतराय और अजीत सिंह को मई 1907 में काले पानी की जो सजा दी गई, वह तो केवल तिलक को 1908 में दी गई देश निकाले की सजा की पूर्व भूमिका मात्र थी जिसका चुपचाप समर्थन मार्ले ने किया था। जहां तक माले-मिण्टो-सुधारों का सम्बन्ध है, महात्मा गांधी ने 1932 में लेडी मिण्टो से कहा था : ''उन्हीं के कारण हमारी बरबादी हुई है। यदि उस समय पृथक् निर्वाचन न शुरू किया गया होता तो अब तक हम लोग अपने सारे मतभेद दूर कर चुके होते।'' इस पर लेडी मिण्टो ने आपत्ति की थी कि पृथक् निर्वाचन का प्रस्ताव तो आपके ही नेता गोखले ने किया था।''
तब महात्मा गांधी के मुख से निकला था : ''ओह! गोखले तो एक भले आदमी थे, लेकिन भले आदमी भी गलती कर बैठते हैं।'' यहां, बस, अब इतना ही बताना उचित होगा कि जब मार्ले ने दिसम्बर 1908 में सुधार-विधेयक (रिफॉर्म बिल) ब्रिटिश संसद में पेश किया, तब तिलक माण्डले में कैद थे। लेकिन पहले ही वह साम्प्रदायिक निर्वाचन के घातक सिद्धान्त का जोरदार विरोध कर चुके थे।
ऊपर बताई बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार से मार्ले अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों के साथ-साथ धमकी की नीति अपना कर उदारवादियों को जीतने में सफल हुए। ब्रिटिश साम्राज्यवाद इस समय दुहरी चाल चल रहा था। एक तरफ जहां लार्ड मिण्टो आगा खां के शिष्टमण्डल से मिलकर मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन-संबंधी उसकी मांग पर गौर फरमा रहे थे। वहीं दूसरी ओर लार्ड मार्ले गोखले के साथ चल रही अपनी वार्ता के माध्यम से उग्रवादियों को उदारवादियों से अलग करने की कोशिश कर रहे थे। इन दोनों का उद्देश्य एक ही था-''फूट डालो और शासन करो।''
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट