जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
तिलक का जो विश्वास था कि वहिष्कार और स्वदेशी आन्दोलन कारगर राजनीतिक हथियार साबित होंगे, वह संभवतः उनके द्वारा निर्धारित समय से पहले सही निकला। लाला लाजपतराय के अनुसार दिल्ली कांग्रेस के समय से ही तिलक सत्याग्रह की बात सोचने लगे थे। इसके तीन उद्देश्य थे-(1) भारतीयों की मोहावस्था समाप्त करना जिसके कारण उन्होंने अंगरेजों को सर्वशक्तिमान मान रखा था (2) देश के लिए त्याग-बलिदान और कष्ट-सहन की भावना पैदा करके स्वतन्त्रता के प्रति उत्कट प्रेम उत्पन्न करना, और (3) देश की स्वतन्त्रता प्राप्त करना।
सत्याग्रह का विचार तिलक के दिलोदिमाग में वर्ष-भर मंडराता रहा और दिसम्बर 19०6 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन के बाद ही वह मुखरित हुआ जब 'नए दल के सिद्धान्तों' पर दिए गए अपने प्रख्यात भाषण में उन्होंने कहा :
''हमारे पास शस्त्र नहीं और उनकी आवश्यकता भी नहीं। वहिष्कार के रूप में हमारे हाथ एक बहुत ही मज़बूत हथियार-राजनीतिक हथियार है। मुट्ठीभर अंगरेजों द्वारा देश का यह सारा प्रशासन हमारी ही सहायता से चल रहा है। हम जानबूझकर भी स्वयं अपने ही दमन का कारण बन रहे हैं। अंगरेज जानते हैं कि वे इस देश में मुट्ठी-भर ही हैं और इसी कारण वे आपको भुलावा देकर जताते है कि वे ताकतवर हैं और आप लोग कमजोर हैं।
''यदि आप में सशस्त्र विद्रोह की शक्ति नहीं तो क्या आत्म-निषेध और आत्मसंयम का भी बल नहीं है जिससे विदेशी सरकार को आप पर शासन करने में सहायता न मिल सके? इसे ही वहिष्कार कहते हैं और इसी कारण हम इसे राजनीतिक हथियार कहते हैं। राजस्व वसूलने और शान्ति बनाए रखने में हम अंगरेजों की सहायता नहीं करेंगे। भारत के बाहर युद्ध में हम धन-जन से उनकी मदद नहीं करेगे। न्यायालयों के काम में हम मदद नहीं देंगे। हमारे अपने निजी न्यायालय होंगे और जब समय आएगा, तब हम कर भी नहीं देंगे। क्या आप लोग अपने सम्मिलित प्रयास से यह सब कर सकते हैं, यदि कर सकते हैं तो आप कल ही स्वतन्त्र हो जाएंगे।''
तिलक ने 1906 में ही जिस असहयोग का आन्दोलन का खाका खींचा था, उसे ही 14 वर्ष बाद महात्मा गांधी ने चलाया। आत्मनिषेध के लिए गांधीजी ने जनता से जो अपील की थी, उसमें लगता था स्वयं लोकमान्य ही बोल रहे हों-हू-ब-हू वे ही शब्द। किन्तु बंगभंग से उत्पन्न महान राष्ट्रीय जागरण के बावजूद अभी सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ करने का समय नहीं आया था। देश को अभी बहुत संघर्ष और कष्ट सहन करना था और इसके बाद वह महात्मा गांधी के ही नेतृत्व में असहयोग अन्दोलन कर सकता था। फिर भी निहत्थी जनता को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए सत्याग्रह की शक्ति व क्षमता को पहली बार स्पष्ट रूप से समझाने का श्रेय तिलक को ही है।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट