जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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''इस पर मालवी चिल्ला उठे-'आप कांग्रेस को स्थगित करने का प्रस्ताव नहीं कर सकते। मैं आपको नियम-विरुद्ध घोषित करता हूं।' तिलक ने उत्तर दिया-'मुझे अध्यक्ष के चुनाव के विषय में संशोधन पेश करना है और आप अध्यक्ष नहीं हैं।' इस पर डॉ० घोष ने चिल्लाकर कहा-'मैं आपको नियम-विरुद्ध घोषित करता हूं।' तिलक ने उत्तर दिया-'आप चुने हुए अध्यक्ष नहीं हैं। मैं प्रतिनिधियों से अपील करता हूं।'
''उस भयंकर शोर में और कुछ नहीं सुनाई पड़ा। दोनों हाथ जोड़कर तिलक दर्शकों के सम्मुख खड़े थे। साथ ही उनके दोनों ओर नरम दल के कुछ नवयुवक खड़े होकर अपने मुक्के दिखाते हुए बदला लेने की धमकी दे रहे थे। घूंसा दिखलाते हुए उन्होंने तिलक को मंच से बाहर फेंक देने की धमकी दी। उनके पीछे टेबुल पर चढ़कर डां. घोष बार-बार घण्टी बजा रहे थे और ऊंची आवाज में उत्तेजित होकर श्रोताओं से शांत रहने की अपील कर रहे थे।
''अपने समर्थकों को क्रोध शान्त करने के लिए समझाते हुए गोखले ने तिलक को अपनी बांहों में समेटकर उन्हें आक्रमण से बचाने की चेष्टा की। लेकिन तिलक को रक्षा की आवश्यकता न थी। वह दोनों हाथ जोड़े उसी भांति अविचल खड़े थे, मानो अपने विरोधियों की धमकी की उन्हें तनिक भी परवाह न हो। लगता था, हिंसा के सिवाय विश्व में कोई और ताकत नहीं, जो उन्हें वहां से हटा सके। उनके सामने जनसमूह समुद्र की भांति उमड़ा पड़ रहा था।
''तभी अचानक हवा में कोई चीज़ उड़ती-उछलती दिखाई दी। वह एक जूता था, मराठा जूता, लाल चमड़े का-जिसके तलवे में कीलें ठुंकी हुई थीं। वह फेंका हुआ जूता आकर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के गालों पर लगा और फिर टकराकर फिरोजशाह मेहता पर जा गिरा। उसके मंच पर गिरते ही पगड़ी बांधे, सफेद कपड़े पहने लोगों का समूह मंच की ओर क्रोधावस्था में बढ़ चला। कुर्सियां फांदता और क्रोध से गरजता-चिल्लाता यह जनसमूह आगे बढ़कर जिस किसी पर भी नरम दल का होने का सन्देह करता, उसकी मरम्मत करने लगा। इसके बाद के क्षणों में तो मैंने कांग्रेस को अराजकता में डूबते-टूटते ही देखा।''
इस वर्णन के साथ यह भी बता देना आवश्यक है कि हिंसा का प्रयोग केवल गरम दलवालों ने ही नहीं किया। नरम दलवाले भी इसके लिए उतने ही दोषी थे, क्योंकि राष्ट्रवादी दल (नेशनलिस्ट पार्टी) की ओर से जारी किए गए एक वक्तव्य में स्वागत समिति पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने राष्ट्रवादी स्वयंसेवकों को हटाकर पंडाल में कई जगह किराए के गुण्डे खड़े कर दिए थे, जिन्होंने ''अपने मालिकों की ओर से इस लड़ाई-झगड़े में भाग लिया।'' इसका भी कोई प्रमाण नहीं कि किसी राष्ट्रवादी ने ही जूता फेंका था। हो सकता है कि किसी नरम दलवाले ने ही तिलक पर वह जूता फेंका हो।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट