नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
देखा राजन ने कन्या को,
कन्या ने उन्हें प्रणाम किया,
चल पड़े नृपति अपने घर को,
मन में लेकर वह रूप राशि॥60॥
कोई विवाह प्रस्ताव न था-
राजन का, उस सुन्दर धी से,
कारण उनका था एक पुत्र,
पहले से ही गंगा-द्वारा॥61॥
पर मन में छवि थी बैठ गई,
जो सदा विहरती रहती थी,
सोते-जागते, उठते बैठते,
था ध्यान उसी कन्या पर ही॥62॥
राजन को भोजन रुचे नहीं,
आँखों से कोसों दूर नींद,
थे राजकाज से भटक गए,
चिंतन में रहती वह कन्या॥63॥
देखा सुत ने, हैं सूख रहे,
दिन प्रतिदिन राजन बिना वजह,
कुछ ज्ञात न होता था कारण,
किसलिए पिता इस तरह दुखित॥64॥
आखिर सुत को उपाय सूझा,
कारण का पता लगाने को,
बुलवाया सारथि को तत्क्षण,
पूछा, हैं तात उदास किस वजह॥65॥
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- अनुक्रम