नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
सारथी ने कुछ न कहा उनसे,
केवल इतना ही बतलाया,
नृप जाते प्रतिदिन कालिंदी-
तट, सन्ध्या में घूमने हेतु॥66॥
हे पालक! वे सब दिन जाते,
धीवर के घर को बिना कार्य,
कुछ समय बिताते उसके घर,
फिर वापस आते राजमहल॥6॥
इतना सुन देव लिया सारथि-
को, अपने साथ उसी क्षण ही,
पहुँचा उस धीवर के निवास,
आने का कारण बतलाया॥68॥
सुनकर सब बातें धीवर ने,
बतलाया उनको पूर्ण बात,
कुछ कहते नहीं नृपति आकर,
फिर बिना रुके चल देते हैं॥69॥
देखा था उनने कन्या को-
मेरी, जब प्रथम बार आए,
फिर उसके बाद न देखे हैं,
ना जिक्र किए कोई हमसे॥70॥
समझी सब बात देवव्रत ने,
वापस चल दिए राजगृह को,
फिर पहुँच कक्ष में राजन् के,
देखा राजन है पड़े हुए॥71॥
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- अनुक्रम