नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
पूछा राजन से तब सुत ने,
क्या कष्ट पिताश्री बतलायें,
करने को निराकरण उसका,
मुझको उपाय कुछ बतलाएँ॥72॥
मेरा जितना बल पहुँचेगा,
उतनी मेरी कोशिश होगी,
यदि प्रभु प्रसन्न रहते हैं तो,
यह होगा अहोभाग्य मेरा॥73॥
पर जितना भी हठ करने पर,
राजन् न बताए कुछ रहस्य,
हो देव अधिक ही परेशान,
फिर पहुँच गया धीवर के घर॥74॥
फिर से पूछा उस धीवर से,
हे आर्य! आप ही बतलायें,
कारण क्या? पिता दुखित इतने,
हैं कौन शूल उनके मन में॥75॥
यदि यही अवस्था सदा रही,
राजन् न अधिक बच पाएँगे,
इसी सोच को ढो-ढो कर,
धरती से ही उठ जाएँगे॥76॥
सुन सारी दशा देव की वह-
मल्लाह, पड़ गया चिन्ता में,
बोला अत्यन्त सौम्य होकर,
हे कुंवर! बात यह ऐसी है-॥77॥
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- अनुक्रम