नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
बोले शान्तनु क्या किया पुत्र?
तूने अपना बलिदान दिया,
मेरी सुख सुविधा के वास्ते,
कोई भी कष्ट न हो मुझको।।120॥
क्या दे सकता मैं तुझे पुत्र?
वर एक तुझे देता खुश हो,
तू प्राप्त करें निज इच्छा से,
अपने परलोक गमन को भी॥121॥
तू अगर नहीं चाहेगा तो,
हो चाहे खड़ी मृत्यु-देवी,
तुझको न कभी छू पाएगी
जब तक तेरा आदेश न हो॥122॥
तब हुई गिरा नभ से पुनीत,
रह गए सन्न सब देव-दनुज,
सब ने ही कहा एक स्वर में,
ऐसा न पुत्र होगा आगे॥123॥
जय गान हुआ नभ-देवों का,
पूरा ब्रह्माण्ड अचम्भित था,
जो कर न सके सुरगण अब तक।
कर दिखलाया नर एक वही॥124॥
हो गए अजेय भीष्म जग में।
कोई था नहीं सामने में।
जो उनके बल को थाह सके।
एवं उनको ललकार सके॥125॥
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- अनुक्रम