नई पुस्तकें >> वैकेन्सी वैकेन्सीसुधीर भाई
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आज के परिवेश का उपन्यास
आज विकास इतना थका था कि सीधे घर आकर सो गया। जब आँख खुली तो रात के नौ बज रहे थे। मुन्नूबाबू और अतुल भी दुकान से घर पर आ चुके थे। विकास भी मुँह हाथ धोकर खाने के लिये जाता है।
"भइया आ गये माँ" – निक्की बोली।
निक्की, विकास की छोटी बहन थी। निक्की और विकास में मेलजोल भी खूब था तो तनातनी भी बहुत थी।
विकास : नहीं, आ तो पहले गया था पर बाहर वाले कमरे में ही सो गया था।
मुन्नूबाबू उधर बाथरूम में फ्रेश हो रहे थे और अतुल अन्दर कमरे में टीवी देख रहा था। मुन्नूबाबू का घर मध्यमवर्गीय सम्पन्न घरों जैसा था। घर में सभी कमरे कामन रूम जैसे ही थे। डबल स्टोरी बिल्डिंग में एक किचन, चार कमरे और किचन से लगा एक छोटा डाइनिंग हाल, सबसे बाहर ड्राइंगरूम कम बरामदा जैसा कमरा, जिसमें शाम के बाद अतुल की मोटरसाइकिल और निक्की की स्कूटी भी समायोजित हो जाती थी। छत पर मुन्नूबाबू के हाथों से लगाये गये गमलों से बना किचन गार्डन, जिसमें वो अपने बागवानी के शौक को भी निखार लेते। जरूरत के हिसाब से कमरों में सभी बच्चे एडजस्ट हो जाते। ऊपर के कमरों में एक-एक कमरा अतुल और विकास का था और नीचे के कमरों में एक कमरा क्रान्ति और निक्की ने पढ़ाई के लिये बना रखा था। एक कमरा निर्मलादेवी का था लेकिन बेटियाँ सोती अपनी माँ के साथ ही थीं। और मुन्नूबाबू बाहर बरामदे कम ड्राइंगरूम में लेट जाते।
"विकास, खाना खा लो" – माँ ने विकास से कहा।
विकास : हाँ..माँ।
निर्मलादेवी : दिन भर कहाँ रहा रे?
विकास : कहीं नहीं माँ, इन्टरव्यू के लिये गया था। उसी में दिन भर लग गया।
अतुल : कैसा रहा?
विकास : कुछ खास नहीं। कंसल्टेन्सी का था। कहा है, आगे काल करेंगे।
तब तक मुन्नूबाबू भी बाथरूम से तौलिया लपेटे आ गये।
रात का खाना परिवार के लोग साथ में ही डाइनिंग रूम में खाते हैं। माता जी या लड़कियाँ बाद में खायें, इस तरह का कोई भेदभाव नहीं है। भोजन के समय जो भी आता जाता है वो खाने के लिये बैठता जाता है। बस कुछ इसी तरह से परिवार का जीवन कट रहा होता है।
मुन्नूबाबू ने भोजन के समय विकास से इन्टरव्यू के विषय में कोई बातचीत नहीं की। वो विकास पर अनावश्यक दबाव नहीं बनाना चाहते थे।
अगले दिन विकास सुबह-सुबह कालेज के लिये निकल जाता है क्योंकि आज उसका फाइनल इयर के एग्जाम का रिजल्ट भी आने वाला था। कालेज में आज बड़ा ही जोशीला माहौल था। कुछ भी फैशनेबल पहनकर कालेज आ जाने वाले छात्र-छात्रायें साफ-सुथरे वस्त्रों में आज कुछ संजीदा और परिपक्व नजर आ रहे थे। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी का माहौल था। और हो भी क्यों न, आज उनका ग्रेजुएशन जो पूरा हो रहा था। इनमें से अधिकतर के कालेज जीवन का ये आखिरी दिन होगा। अब यहाँ से निकलने के बाद कोई सीधे नौकरी ज्वाइन करेगा तो कोई तलाश में निकलेगा। कोई व्यापार के गुणा--भाग में लगेगा तो कहीं कोई छात्रा अब घर ग्रहस्थी में उलझेगी। आगे पढ़ाई जारी रखने वाले छात्र छात्राओं की संख्या कम ही होगी।
"हाय दिवाकर" – विकास ने दिवाकर को हाथ हिलाकर इशारा किया, जो अपनी दोस्त सोनिया के साथ कहीं एकान्त में अलग खड़ा बातों में मशगूल था। दिवाकर ने भी हाथ हिलाकर विकास के अभिवादन का जवाब दिया। सोनिया ने भी विकास को बड़े उदास मन से हेलो बोला।
विकास : क्या बात है सोनिया जी इतनी उदासी से हेलो?
दिवाकर : कुछ नहीं यार, तू तो जानता ही है कि मेरा लन्दन की एक युनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई के लिये सेलेक्शन हो गया है। पिता जी की भी यही इच्छा है कि मैं आगे की पढ़ाई के लिये जाऊँ, इसी वजह से ये उदास है कि अब मिलना नहीं हो पायेगा।
विकास : ओह.. तो यह बात है मैडम जी। इसीलिये चेहरे का नूर उतरा हुआ है। अरे तो क्या हुआ, हम लोग तो हैं कम्पनी देने के लिये - विकास ने हँसते हुए कहा।
सोनिया : मजाक मत करो विकास। तुम्हारा दोस्त वहाँ जा कर मुझे भूल जायेगा।
दिवाकर : कैसी बात करती हो सोनिया। मैं पढ़ने के लिये ही तो जा रहा हूँ, केवल तीन साल की तो बात है।
सोनिया : तीन साल...तीन साल कुछ होते ही नहीं हैं। लगभग सुबुकते हुए सोनिया बोली।
विकास : भाई बात में प्वाइन्ट तो है। तू समस्या का हल ढूँढ तब तक मैं जरा रिजल्ट देखकर आता हूँ।
दिवाकर : अन्दर लाबी की भीड़ में जाकर रिजल्ट देखने की क्या जरूरत है। यहीं मोबाइल में नेट पर देख लो।
विकास : देख भाई अब तू लन्दन का छात्र होने जा रहा है तो तू भीड़ में कहाँ खड़ा हो पायेगा। हम ठहरे कनपुरिये छात्र जब तक बोर्ड पर धक्का-मुक्की किये बिना रिजल्ट न देखें तब तक चैन कहाँ?" विकास ने ये बात सोनिया की तरफ कुछ इस तरह देखकर मुस्कुराते हुए कही कि सोनिया अन्दर से और रूआँसी हो गई।
अन्दर लाबी में काफ़ी संख्या में छात्र रिजल्ट देख रहे थे। विकास भी लिस्ट बोर्ड की तरफ जाता है तो वहाँ सुरेश पहले ही अपने साथ-साथ विकास के मार्क्स भी देख चुका था। "बधाई हो विकास जी दोनों की सेम परसेंटेज और फर्स्ट डिवीजन" – सुरेश ने विकास को गले लगाते हुए कहा।
भाई तुम्हें भी बधाई हो – विकास ने चहकते हुए सुरेश को गले लगा लिया।
सुरेश : ...और विकास, कल शाम को तुम आते ही रह गये?
विकास : अरे नहीं यार.... कल काफी शाम हो गई थी और थक गया था, फिर घर जाते ही सो गया। सीधे रात को ही नींद खुली और सुना आज तो रिजल्ट भी आ गया है। अब आगे का क्या प्रोग्राम है?
सुरेश : बस कुछ नहीं। अब सरकारी नौकरी के लिये कम्पटीशन की तैयारी करनी है।
तभी सुरेश का मोबाइल बज उठता है। उधर से किसी लड़की की मधुर आवाज आती है-कैन आई स्पीक टू मि. सुरेश?
सुरेश : यस, टेल मी।
लड़की : सुरेश, आई एम नेहा फ्राम सनशाइन प्लेसमेन्ट कंससटैन्सी. एक्चुअली आई एम इन्फार्मिंग टू यू दैट यू आर सेलेक्टेड फार फाइनल इन्टरव्यू आफ दुबई इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्पनी. आर यू इन्ट्रेस्टेड टू अटैण्ड फाइनल इन्टरव्यू?
सुरेश : यस मैम।
लड़की : ओ.के, सुरेश, यू मस्ट कम इन अवर आफिस एट 10.00 ओ क्लाक, टुमारो।
सुरेश : ओ.के, मैम।
विकास : किसका फ़ोन था दोस्त?
सुरेश : यार वही कंसल्टेन्सी वाले हैं। कल एक बार फिर बुलाया है। कह रहे हैं फाइनल इन्टरव्यू है दुबई के लिये।
विकास : यार तेरी तो लग गई। आइ एम श्योर। आज ही फाइनल कम्प्लीट हुआ और आज ही नौकरी की खुशखबरी वो भी दुबई में, पार्टी तो बनती है।
सुरेश ने हँसकर कहा- "नहीं भाई, ये तो कल वहाँ फाइनल इन्टरव्यू के बाद पता चलेगा।"
विकास के मन में विचार चल रहा था कि सुरेश की नौकरी तो लगभग लग ही गई है। उसे भी जल्द से जल्द कोई न कोई ढूँढ़ ही लेनी चाहिये। वरना पिता जी को पता चल गया तो कहीं ताना न मार दें कि सुरेश की नौकरी लग गई और तुम्हारी अभी भी हीला-हवाली चल रही है। कुछ करना ही नहीं चाहते हो। बस घर में पड़े रहना चाहते हो। विकास थोड़ा अन्दर ही अन्दर सीरियस हो गया था क्योंकि मिशन नौकरी अब गम्भीर मसला हो गया है।
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