सदाबहार >> तितली तितलीजयशंकर प्रसाद
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प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद का श्रेष्ठतम उपन्यास...
बेटा विलायत से लौट आया है। एक दिन उनसे मिलकर उनकी चरण-रज लेकर वह छावनी में चला आया और यहीं रहने लगा।
लोग कहते हैं कि इन्द्रदेव के कानों में जब यह समाचार किसी मतलब से पहुँचा दिया गया कि चरण छूकर आपके चले आने पर माताजी ने फिर से स्नान किया, तो फिर वह मकान पर न ठहर सके।
किन्तु श्यामदुलारी की प्रकृति ही ऐसी है। उसने ऐसा किया हो, तो कोई आश्चर्य नहीं। तब भी श्यामदुलारी को तो यही विश्वास दिलाया गया कि-साथ में मेम नहीं आई है!
श्यामदुलारी अपने बेटे को सम्भालना चाहती थीं। बेटी माधुरी से पूछकर यही निश्चित हुआ कि सब लोग छावनी पर ही कुछ दिन चलकर रहें। वहीं इन्द्रदेव को सुधार लिया जायगा।
माधुरी घर की प्रबंधकर्त्री है। वह दक्ष, चिड़चिड़े स्वभाव की सुन्दर युवती है। माता श्यामदुलारी भी उसके अनुशासन को मानती हैं और भीतर-ही-भीतर दबती भी हैं।
माधुरी का पति उसकी खोज-खबर नहीं लेता। उसे लेने की आवश्यकता ही क्या? माधुरी धनी घर की लाड़ली बेटी है। इसलिए बाबू श्यामलाल को इस अवसर से लाभ उठाने की पूरी सुविधा है।
श्यामदुलारी, बेटी ओर दामाद दोनो को प्रसन्न रखने की चेष्टा में लगी रहती हैं। बहुत बुलाने पर कभी साल भर में बाबू श्यामलाल कलकत्ता से दो-तीन दिन के लिए चले आते हैं। उनका व्यवसाय न नष्ट हो जाय, इसलिए जल्द चले जाते हैं- अर्थात् रेस की टीप, बगीचों के जुए, स्टीमरों की पार्टियाँ - और भी कितने ही ऐसे काम हैं, जिनमें चूक जाने से बड़ी हानि उठाने की संभावना है।
माधुरी शासन करने की क्षमता रखती है। भाई इन्द्रदेव पढ़ते थे; इसलिए माता की रुग्णावस्था में घर-गृहस्थी का बोझ दूसरा कौन सम्हालता?
माधुरी की अभिभावकता में माता श्यामदुलारी सोती है- सपना देखती है। इसलिए माधुरी भी साथ ही आई हैं। चौकी पर मोटे-से गद्दे पर तकिया सहारे बैठी वह कुछ हिसाब देख रही थी। पेट्रोल-लैम्प के तीव्र प्रकाश में उसकी उठी हुई नाक की छाया दीवार पर बहुत लम्बी-सी दिखाई पड़ती है।
मलिया बडी नटखट छोकरी है। वह पान का डब्बा लिये हुए, उस छाया को देखकर, जोर से हँसना चाहती है; पर माधुरी के डर से अपने ओठों को दाँत से दबाये चुपचाप खड़ी है। मिस अनवरी की छाया से वह चौंक उठी। उसने चुलबुलेपन से कहा-मेम साहब, सलाम!
माधुरी ने सिर उठाकर देखा और कहा-आइए, हम लोग बड़ी देर से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। माँ का दर्द तो वहुत बढ़ गया है।
माधुरी के पास ही बैठते हुए अनवरी ने-बीबी, तुमको देखने के लिए जी ललचाया रहता है, माँ को तो देखूंगी ही-कहकर उसके हाथों को दबा दिया। माधुरी ने झेंपकर कहा-आहा! तुम तो मेम और साहब दोनों ही हो न? अच्छा, यह तो बताओ, तुम्हारे ठहरने का क्या प्रबन्ध करूँ? आज रात को तो मोटर से शहर लौट जाने न दूँगी। अभी मां पूजा कर रही हैं, एक घंटे में खाली होंगी, फिर घंटों उनको देखनें में लग जायगा। बजेगा दो और जाना है तीस मील! आज रात तो तुमको रहना ही होगा।
अनवरी ने मुस्कराते हुए कहा-सो तो बीबी, तुम्हारी भाभी ने मुझे न्योता ही दिया है।
माधुरी क्षण-भर के लिए चुप हो गई। फिर बोली-अनवरी, ऐसी दिल्लगी न करो, यह बात मुझे ही नहीं, घर भर को खटक रही है। लेकिन भाई साहब तो कहते हैं कि वह तुमारी दोस्त है।
हां-बीवी, दोस्ती नहीं तो क्या दुश्मनी से कोई इतना बड़ा...
माधुरी ने भीतर के कमरे की ओर देखते हुए उसके मुँह पर हाथ रख दिया, और धीरे-धीरे कहने लगी-प्यारी अनवरी! क्या इस चुड़ैल से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं? हम लोग क्या करें? कोई बस नहीं चलता।
धीरे-धीरे सब हो जायगा। लेकिन तुम्हें बुरा न लगे, तो मैं एक बात पूछ लूँ। क्या?
कुँवर साहब इससे ब्याह कर ले, तो तुम्हारा क्या?
ऐसा न कहो अनवरी।
तुम्हारी माँ तो फिर तुमको ही...
उँह, तुम क्या बक रही हो!
अच्छा तो मैं कुछ दिन यहाँ रहूँ तो...
तो रहो न मेरी रानी।
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