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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


सुरंजन सुनता है और अपनी उदासीनता देखकर खुद ही हैरान होता है। इस खबर को सुनते ही उसे क्षोभ के मारे फट पड़ना चाहिए था। परन्तु आज उसे लग रहा है कि इस झण्डे के जल जाने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता। यह झण्डा उसका नहीं है, सुरंजन ऐसा क्यों सोच रहा है? उसके अन्दर ऐसी भावना आ रही है इसलिए वह खुद को धिक्कारता है। अपने आप पर क्रोध आता है, वह अपने को बड़ा नीच, बड़ा स्वार्थी समझता है फिर भी उसकी उदासीनता का भाव दूर नहीं होता। झण्डे के जल जाने से उसके अन्दर जो क्रोध व भावना उत्पन्न होनी चाहिए थी वह कुछ भी नहीं हुआ।

पुलक सुरंजन के पास आकर बैठा। बोला, 'आज मत जाओ, यहीं रुक जाओ! बाहर निकलने पर कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। इस वक्त हममें से किसी का रास्ते में निकलना ठीक नहीं है।'

कल लुत्फर ने उसे इसी तरह समझाया था। सुरंजन ने पुलक के स्वर की आत्मीयता और लुत्फर के स्वर के सूक्ष्म अहंकार को अनुभव किया।

नीला लम्बी साँस छोड़ती हुई बोली, 'शायद अब और देश में नहीं रह पाऊँगी। आज भले ही कुछ नहीं हुआ, कल हो सकता है, परसों हो सकता है। कितनी भीषण अनिश्चितता है हमारे जीवन की। इससे निश्चिंत, निर्विघ्न दरिद्र जीवन बहुत अच्छा है।'

पुलक की बात मानकर सुरंजन रुक ही जाता, लेकिन सुधामय और किरणमयी की याद आते ही कि वे चिन्तित होंगे, सुरंजन जाने के लिए खड़ा हो गया। बोला, 'जो होगा देखा जायेगा। मुसलमानों के हाथों शहीद ही हो जाऊँगा। राष्ट्रीय स्कूल के सामने लावारिस लाश पड़ी रहेगी। लोग कहेंगे-यह कुछ नहीं, दुर्घटना है। क्यों, ठीक कहा न?' सुरंजन हँसने लगा। लेकिन पुलक और नीला के होंठों पर हँसी नहीं आयी।

उसे रास्ते में निकलते ही एक रिक्शा मिल गया। अभी सिर्फ आठ ही बजे हैं। उसकी घर लौटने की इच्छा नहीं हुई। पुलक उसका कॉलेज के जमाने का दोस्त है। शादी-ब्याह करके सुन्दर गृहस्थी बसायी है। उसी का कुछ नहीं हुआ, उम्र तो काफी हो गयी। करीब दो महीना पहले रत्ना नाम की एक लड़की से उसका परिचय हुआ है। अचानक कभी-कभी सुरंजन के मन में शादी करके घर बसाने की इच्छा होती है। परवीन की शादी हो जाने के बाद तो उसने संन्यास लेने के बारे में सोचा था। लेकिन अब फिर सब कुछ सँवार लेने की इच्छा हो रही है। अब उसे कहीं पर पैर जमाने की इच्छा हो रही है। मगर रत्ना से उसने अब तक कुछ कहा नहीं, 'तुम जो मुझे इतनी अच्छी लगती हो, क्या तुम इस बात को जानती हो?'

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