जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
पहली मुलाकात के कुछ दिनों बाद रत्ना ने उससे पूछा, 'अभी आप क्या कर रहे हैं?'
'कुछ भी नहीं!' सुरंजन ने होंठ उलटते हुए कहा था।
'नौकरी-चाकरी, व्यवसाय, कुछ भी नहीं?'
'नहीं!'
'राजनीति करते थे, वह?'
'छोड़ दिया!'
'युवा यूनियन के सदस्य भी तो थे!'
'वह सब, अब अच्छा नहीं लगता!'
'तो क्या अच्छा लगता है?'
'घूमना, लोगों को देखना!'
'पेड़-पौधे, नदी-पहाड़ देखना अच्छा नहीं लगता?'
'लगता है! लेकिन सबसे ज्यादा मनुष्यों को देखना अच्छा लगता है। मनुष्य के अन्दर जो रहस्यमयता है, उसकी गांठ को खोलना ज्यादा अच्छा लगता है।'
'कविता भी लिखते हैं?'
'अरे नहीं! लेकिन काफी कवि दोस्त हैं।'
'शराब-वराब पीते हैं?'
'कभी-कभी।'
'सिगरेट तो काफी पीते हैं।'
'हाँ, वह तो पीता हूँ। पैसा तो मिलता नहीं!'
'सिगरेट इज इन्ज्यूरियस टु हेल्थ। यह तो जानते हैं न?'
'जानता हूँ। लेकिन कुछ कर नहीं सकता।'
'शादी क्यों नहीं की?'
'किसी ने पसंद नहीं किया, इसलिए!'
'किसी ने भी नहीं?'
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