लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


हैदर सुरंजन के घर आया। कैसा है यह जानने के लिए नहीं, बल्कि अड्डा मारने। हैदर अवामी लीग की राजनीति करता है। कभी सुरंजन ने उसके साथ छोटा- मोटा बिजनेस शुरू किया था, बाद में कोई फायदा न देखकर उस योजना को स्थगित कर दिया। हैदर का प्रिय विषय राजनीति है। सुरंजन का भी वह प्रिय विषय था। यह और बात है कि आजकल वह राजनीतिक प्रसंग को बिलकुल नापसंद करता है। इरशाद ने क्या किया था, खालिदा ने क्या किया है और हसीना क्या करेगी, इन बातों में समय नष्ट करने से सोये रहना ज्यादा अच्छा है। हैदर खुद ही बोले जा रहा है। राष्ट्रधर्म इस्लाम को लेकर वह एक लम्बा-चौड़ा भाषण देता है।

'अच्छा हैदर!' सुरंजन अपने बिस्तर पर अधलेटा होकर पूछता है, 'तुम्हारे राष्ट्र या संसद को क्या अधिकार है कि अन्य धर्मों के लोगों के बीच भेदभाव उत्पन्न करे?

हैदर कुर्सी पर बैठा मेज पर पाँव चढ़ाए सुरंजन की लाल जिल्द वाली किताबों का पन्ना पलट रहा था। उसकी बात सुनकर 'हो-हो' करके हँसने लगा। बोला, 'तुम्हारे राष्ट्र का मतलब? राष्ट्र क्या तुम्हारा नहीं है?'

सुरंजन होंठ दबाकर हँसता है। उसने आज जान-बूझकर हैदर को 'तुम्हारे' शब्द का उपहार दिया। हँसकर बोला, 'मैं कुछ सवाल करूँगा, उनका जवाब तुमसे चाहता हूँ।'

हैदर सीधा होकर बैठता है। फिर बोला, 'तुम्हारे सवाल का जवाब है, नहीं! यानी राष्ट्र को कोई अधिकार नहीं है अन्य धर्मों के बीच भेद-भाव उत्पन्न करने का।'

सुरंजन ने सिगरेट का लम्बा कश लेकर पूछा, 'राष्ट्र या संसद को क्या यह अधिकार है कि वह किसी एक धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा ज्यादा दिलचस्पी या विशेष अनुकूलता दिखाये?'

हैदर ने तुरन्त जवाब दिया, 'नहीं।'

सुरंजन का तीसरा सवाल था, 'राष्ट्र या संसद को क्या पक्षपात करने का अधिकार है?'

हैदर ने माथा हिलाया, 'ना।'

'संसद को क्या अधिकार है कि लोकतांत्रिक बांग्लादेश की राष्ट्रीय संविधान में वर्णित अन्यतम मूल नीति, धर्मनिरपेक्षता की नीति में परिवर्तन करे?'

हैदर ने ध्यान से उसकी बात सुनी। फिर बोला, 'कदापि नहीं।' सुरंजन फिर सवाल करता है, 'देश की सार्वभौमिकता तो सभी नागरिकों के समान अधिकार की नींव पर प्रतिष्ठित है। फिर संविधान को संशोधित करने के नाम पर उस नींव पर ही कुठाराघात नहीं किया जा रहा है?'

इस बार हैदर ने आँखें छोटी करके सुरंजन की तरफ देखा, 'वह मजाक तो नहीं कर रहा है!'

सुरंजन अपना छठा सवाल करता है, 'राष्ट्रीय धर्म इस्लाम घोपित करके क्या दूसरे धर्मावलंबियों के समुदाय को राष्ट्रीय अनुकूलता या स्वीकृति से वंचित नहीं किया गया है?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book