लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'तुम्हारा घर इतना सुनसान क्यों है? मौसा-मौसी कहाँ हैं? कहीं दूसरी जगह भेज दिये हो?'

'नहीं!'

'अच्छा सुरंजन, एक बात पर तुमने ध्यान दिया है। गुलाम अजमेर की सुनवाई की माँग को जमाती लोग बाबरी मस्जिद के बहाने दूसरे खाते में ले जा रहे हैं?'

'शायद ले जा रहे हैं! लेकिन यकीन मानो, गुलाम अजमेर को लेकर तुम जिस तरह से सोच रहे हो, मैं उस तरह से सोच नहीं पा रहा हूँ। उसे अगर जेल या फाँसी हो जाती है तो उससे मेरा क्या! और अगर नहीं भी होती है तो भी उसमें मेरा क्या?

'तुम काफी बदलते जा रहे हो!'

'हैदर! खालिदा जिया ने भी कहा कि बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण करना होगा। अच्छा वह क्यों मंदिरों के पुनर्निर्माण की बात नहीं कह रही है?'

'क्या तुम मंदिरों का निर्माण चाहते हो?'

'तुम बहुत अच्छी तरह से जानते हो कि न तो मैं मंदिर चाहता हूँ और न मस्जिद। लेकिन जब निर्माण की बात उठ रही है तब सिर्फ मस्जिद का ही निर्माण क्यों होगा?'

हैदर एक और सिगरेट सुलगाता है। वह सोच नहीं पा रहा है कि मानव-बन्धन के दिन सुरंजन अकेला क्यों घर पर बैठा रहेगा। इसी वर्ष 26 मार्च को जब 'जन अदालत' हुई थी, हैदर एक चादर ओढ़कर सोया हुआ था। उसने जम्हाई लेते हुए कहा था, 'आज नहीं चलते हैं, बल्कि घर पर बैठकर ही 'मुढ़ी-भुजिया' खाते हैं।' लेकिन सुरंजन उसके इस प्रस्ताव पर तैयार नहीं हुआ, उठकर खड़ा हो गया था और कहा था, 'तुम्हें तो चलना ही होगा। तुरंत तैयार हो जाओ। यदि हम लोग ही पीछे हट जायेंगे तो कैसे होगा?' आँधी-तूफान के बीच वे दोनों निकले थे। वही सुरंजन आज कह रहा है-यह सभा-समिति उसे अच्छी नहीं लगती। मानव बंधन-वंधन सब कुछ उसे ढकोसला लगता है।

हैदर सुबह नौ बजे से ग्यारह बजे तक बैठा रहा। फिर भी सुरंजन को मानव-बंधन में न ले जा सका।

किरणमयी जाकर पारुल के घर से माया को ले आयी। आते ही वह अक्षम, अचल, असहाय पिता की छाती पर गिरकर फूट-फूटकर रोयी। रोने की आवाज सुन कर सुरंजन को बहुत कोफ्त होती है। क्या आँसू बहाने से भी दुनिया में कुछ होता है? इससे ज्यादा जरूरी है इस समय उनका इलाज करवाना। हरिपद डॉक्टर द्वारा बतायी गयी दवा सुरंजन खरीद लाया है। उसमें महज तीन दिन का 'डोज' है। किरणमयी की आलमारी से उसके बाद और कितना निकलेगा? निकलेगा भी या नहीं, कौन जानता है!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book