जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
उसने खुद तो कोई नौकरी-चाकरी की नहीं। असल में दूसरों की गुलामी करना उसके वश की बात नहीं है। हैदर के साथ अपना पुराना बिजनेस फिर से शुरू करेगा या नहीं, यह सोचते-सोचते उसे जोरों की भूख लगी लेकिन इस समय वह किससे अपने भूख की बात कहेगा? माया, किरणमयी कोई भी तो इस कमरे में नहीं आ रही है। वह बेरोजगार है, अकर्मण्य है इसीलिए कोई उसकी गिनती नहीं रखता। घर पर खाना बन रहा है या नहीं, उसकी जानकारी लेने की उसे इच्छा नहीं होती है। वह भी आज सुधामय के कमरे में नहीं गया। सुरंजन के कमरे का दरवाजा आज बाहर से खुला हुआ है। यार-दोस्त आने पर बाहर से ही उसके कमरे में आ जाते हैं। आज वह अन्दर का दरवाजा बन्द किये हुए है। क्या इसीलिए किसी ने उसके कमरे में दस्तक नहीं दी। वे सोच रही होंगी सुरंजन यार-दोस्तों के साथ अड्डेबाजी करने में मस्त होगा। फिर सुरंजन उनसे इतनी अपेक्षा ही क्यों रखता है? क्या किया है उसने इस परिवार के लिए? सिर्फ यार-दोस्तों के साथ बाहर-बाहर घूमता रहा है, घर के लोगों के साथ किसी भी चीज को लेकर या तो चिल्लाता रहा है या फिर उदासीन रहा है। सिर्फ आन्दोलन ही करता रहा है वह। पार्टी के किसी भी आदेश का नौकर की तरह पालन किया है। आधी-आधी रात घर लौटकर मार्क्स, लेनिन की किताबें रटता रहा है। क्या मिला उसे यह सब करके? क्या मिला उसके परिवार को भी?
हैदर गया है, जाए! सुरंजन नहीं जायेगा। क्यों वह मानव-बन्धन में जायेगा? क्या मानव-बंधन उसे विच्छिन्नता बोध से मुक्ति दिलायेगा? उसे विश्वास नहीं है। आजकल सुरंजन का सब कुछ से विश्वास उठा जा रहा है। यही हैदर उसका बहुत पुराना दोस्त है। वे लगातार कई दिनों तक एक साथ बुद्धि, विवेक की चर्चा करते रहे हैं। मुक्ति युद्ध की चेतना में होकर देश की और मानवीय मूल्य बोध की रक्षा के लिए जनता का आह्वान करते हुए कितने वर्ष एक साथ गुजारे हैं। लेकिन आज सुरंजन को लग रहा है कि यह सब करने की कोई जरूरत नहीं थी। उससे तो अच्छा था वह भर पेट शराब पीता, वी. सी. आर. में फिल्में देखता, ब्लू फिल्म देखता, 'इव टिजिंग' करता, या फिर शादी-ब्याह करके जिम्मेदार आदमी की तरह प्याज-लहसुन का हिसाब करता, सज्जन व्यक्ति की तरह मछली का पेट दबा-दबाकर मछली खरीदता। शायद वही अच्छा होता। इतनी तकलीफ तो नहीं झेलनी पड़ती। सुरंजन सिगरेट सुलगाता है, टेबुल के ऊपर से एक पतली-सी किताब लेकर उस पर आँखें फेरता है। इसमें नब्बे के साम्प्रदायिक अत्याचार का वर्णन है। इस किताब को उसने कभी पलट कर भी नहीं देखा था। दरअसल, उसकी जिज्ञासा ही नहीं हुई। आज इस किताव के प्रति उसके मन में गहरी दिलचस्पी जनमी है।
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