जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
गाय-बकरियों, जो गाँव से नहीं निकल रही थीं, उन्हें काट दिया गया। धान के भण्डार में आग लगा दी। करीब चार हजार हिन्दू क्षतिग्रस्त हुए, पचहत्तर फीसदी घर-द्वार जलकर राख हो गये। एक व्यक्ति की मृत्यु हुई और अनगिनत गाय-भैंसें आग में जल गयीं। अनेक स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ। पाँच करोड़ रुपये की क्षति हुई है। सातबाडिया गाँव में रात के सवा नौ बजे करीब दो सौ लोगों ने लाठी, तलवार, कटार, लोहे की छड़ों से लैस होकर जयराम मंदिर पर आक्रमण किया। मेदिर की प्रत्येक मूर्ति को चूर-चूर कर दिया। हमले की सूचना पाकर आसपास के लोग डरकर जान बचाने के लिए भाग गये। उस रात प्रत्येक परिवार ने जंगल में या धान के खेत में रात काटी और उन लोगों ने उधर हर घर को लूटा। सातबाड़िया सार्वजनिक दुर्गाबाड़ी का कोई चिह्न नहीं मिला। खेजुरिया गाँव के मंदिर और घरों में भी आग लगा दी गयी। अभी तमाम किसान परिवार सर्वहारा हो गये हैं, शैलेन्द्र कुमार की पत्नी ने अपने शरीर में आग लगा ली। उसका सारा शरीर झुलस गया है। शिव मंदिर में जब भक्तगण प्रार्थना में लीन थे, उस समय कुछ लोग आकर घिनौनी गालियाँ देने लगे। मूर्तियों और सिंहासनों को तोड़कर उन पर पेशाब करके चले गये।
सुरंजन की आँखों की दृष्टि धुंधली होती जा रही थी। मानो उनकी पेशाब सुरंजन के शरीर पर पड़ रही है। उसने वह पुस्तक फेंक दी।
हरिपद डॉक्टर ने सिखा दिया है कि हाथ-पाँव में ताकत लाने के लिए किस तरह से एक्सरसाइज करना होगा। माया और किरणमयी दोनों मिलकर सुबह-शाम उसी तरह से सुधामय के हाथ और पैर का एक्सरसाइज करती हैं। समय-समय पर दवा पिला रही हैं। माया का वह चंचल स्वभाव अचानक बिल्कुल गम्भीर हो गया है। उसने अपने पिता को जीवंत पुरुष के रूप में देखा है और अब वही निढाल पड़े हैं। ‘माया-माया' कहकर जब अस्पष्ट स्वर में पुकारते हैं तो माया की छाती फटने लगती है। असहाय गूंगी दो आँखें क्या कुछ कहना चाहती हैं। उसके पिता उसे मनुष्य बनने की कहते थे-शुद्ध मनुष्य। खुद भी ईमानदार और साहसी व्यक्ति थे। किरणमयी बीच-बीच में कहती थी, लड़की बड़ी हो रही है शादी कर देते हैं। सुधामय यह सुनकर अड़ जाते थे। कहते, ‘पढ़ाई-लिखाई करेगी, नौकरी-चाकरी करेगी, उसके बाद यदि उसके मन ने चाहा तो शादी करेगी।' किरणमयी लम्वी साँस छोड़कर कहती, 'तुम कहो तो उसे कलकत्ता में उसके मामा के घर छोड़ देती हूँ। अंजलि, नीलिमा, आभा, शिवानी वगैरह माया की हमउम्र सारी लड़कियाँ कलकत्ता पढ़ने चली गई हैं।' सुधामय कहते-'इससे क्या। क्या यहाँ पढ़ने-लिखने का नियम नहीं है। स्कूल-कॉलेज उठ गये हैं?'
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