जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
माया हैरान होती है कि सुरंजन इस समय भी परिवार से कटा-कटा रहता है। वह दिन भर कमरे में चुपचाप पड़ा रहता है। खायेगा भी या नहीं, कुछ नहीं कहता। उसके पिता जिन्दा हैं या मर गये, उसे पूछना नहीं चाहिए? उसके कमरे में उसके दोस्त आ रहे हैं, अड्डेबाजी कर रहे हैं। बाहर से कमरे में ताला लगाकर चला जाता है। कब जा रहा है, कब लौटेगा, कुछ भी कहा नहीं जा सकता। क्या उसका कोई फर्ज नहीं बनता? उससे तो कोई रुपया-पैसा नहीं माँग रहा है, लड़का होने के नाते पूछताछ करने, डॉक्टर बुलाने, दवा खरीदने और उनके पास आकर बैठने से उनका मानसिक बल थोड़ा बढ़ ही सकता है। कम-से-कम सुधामय को तो अपने बेटे से यह चाहने का हक है कि वह आकर उनका बायाँ हाथ स्पर्श करे। दाहिना हाथ लुंजपुंज है तो क्या हुआ, बायें हाथ में तो अब भी अनुभूति है!
हरिपद डॉक्टर की दवा से सुधामय अब जरा स्वस्थ हो रहे हैं। अस्पष्ट जुबान थोड़ी-थोड़ी स्पष्ट हो रही है लेकिन हाथ-पाँव में चेतना नहीं लौटी है। डॉक्टर ने कहा है, नियमित व्यायाम करने से जल्दी ही ठीक हो जायेंगे। माया का तो और कोई काम नहीं। ट्यूशन करने भी नहीं जाना पड़ रहा है। मिनती नाम की एक लड़की पढ़ती थी, उसकी माँ ने कह दिया है कि अब और पढ़ाना नहीं होगा, क्योंकि वे लोग इंडिया जा रहे हैं।
'इंडिया क्यों?' माया ने पूछा था।
उसकी माँ के होंठों पर दुःख भरी मुस्कराहट आयी थी, उसने कुछ कहा नहीं।
मिनती भिखारुन्निसा स्कूल में पढ़ती थी। एक दिन जब माया मिनती से गणित करवा रही थी तब उसने देखा कि मिनती पेंसिल हिला रही है और कह रही है, 'अलहमदुलिल्लाहिर रहमानी का रहीम' और 'रहमानी का रहीम।'
माया ने हैरान होकर पूछा था, 'तुम यह सब क्या कह रही हो?'
मिनती ने तुरन्त जवाब दिया था, 'हमारी एसेम्बली में 'सूरा' पढ़ा जाता है।'
'अच्छा? भिखारुन्निसा की एसेम्बली में 'सूरा' पढ़ा जाता है?'
'दो सूरा पढ़ा जाता है। उसके बाद राष्ट्रीय संगीत होता है।'
'जब सूरा पढ़ा जाता है, तब तुम क्या करती हो?'
'मैं भी पढ़ती हैं। सिर पर चन्नी डालकर।'
'तुम्हारे स्कूल में हिन्दू, बौद्ध, क्रिश्चियनों के लिए कोई प्रार्थना नहीं है?' 'नहीं।'
माया के मन में अजीब-सा भाव उठता है। देश के एक बड़े स्कूल की एसेम्बली में मुसलमान-धर्म का पालन होता है और उस स्कूल की हिन्दू लड़कियों को भी चुपचाप उस धर्म-पालन में भाग लेना पड़ता है। यह अवश्य ही एक तरह का अनाचार है।
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