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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :9789352291830

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


माया का एक और ट्यूशन भी था। वह लड़की पारुल की ही रिश्तेदार है। सुमइया भी एक दिन बोली, 'दीदी आपसे अब और नहीं पढूँगी!'

'क्यों?'

'अब्बा ने कहा है कि मुसलमान टीचर रखेंगे।'

'अच्छा।'

उसके दोनों ट्यूशन चले गये हैं, घर में कोई इस बात को नहीं जानता। सुरंजन घर से पैसे ले रहा है, माया को भी यदि हाथ पसारना पड़ा तो किरणमयी कैसे संभाल पायेगी! घर में इतनी बड़ी दुर्घटना हो गयी है कि वह फिर से उन्हें दुखी नहीं करना चाहती।

किरणमयी भी अचानक एकदम चुप हो गयी है। चुपचाप दाल-भात पकाती है। सुधामय के लिए फल का रस, सूप तैयार करना पड़ता है। इतना फल कौन ला देगा! सुरंजन दिन भर सोया हुआ है, कोई आदमी इतना सोया रह सकता है! भैया को लेकर माया के मन में थोड़ा रूठने का भाव भी है। सात तारीख को उसने इतना कहा, भैया, चलो! घर छोड़कर हमलोग कहीं चले चलते हैं। उसने उसकी एक नहीं सुनी । क्या अब भी विपदा टली है? परिवार के सभी सदस्यों की उदासीनता देखकर वह भी उदासीन हो गयी है। वह भी सोचना चाह रही है कि जो होता है, हो, मेरा क्या। सुरंजन ही नहीं सोचेगा तो माया अकेली क्या करेगी। उसकी तो ऐसी कोई सहेली नहीं है जिसके घर पर सभी जाकर ठहर सकें। पारुल के घर पर उसे ही हिचकिचाहट हो रही थी। यूँ तो पारुल उसकी घनिष्ठ सहेलियों में एक है, वह दिन-रात उसके घर पर अड्डा मारती रही है। कभी किसी ने नहीं पूछा कि वह क्यों आयी है। लेकिन उस दिन, उसका इतना परिचित घर, फिर भी उन लोगों ने अपरिचित निगाहों से उसे देखा। वह हमेशा उसके घर आती-जाती रही है फिर भी हर निगाह में सवाल था, वह क्यों आयी है? पारुल हमेशा कहती आयी है कि ऐसे समय में उसका अपने घर में रहना निरापद नहीं है।

सुरक्षित-असुरक्षित की बात सिर्फ माया को लेकर ही उठती है, पारुल को लेकर तो नहीं उठती। क्या पारुल को कभी अपना घर छोड़कर माया के घर आश्रय लेना पड़ेगा? माया कुण्ठित होती है, फिर भी जीने की लालसा में वह पारुल के घर अनचाहे अतिथि की तरह पड़ी रही। पारुल ने उसकी कम मेहमाननवाजी नहीं की। फिर भी उसके रिश्तेदार जब घूमने आये तो उनमें से कई ने पूछा, 'तुम्हारा नाम क्या है?'

'माया।'

'पूरा नाम क्या है?'

पारुल माया को पूरा नाम बताने से पहले ही टोकते हुए बोल पड़ी, 'इसका नाम जाकिया सुलताना है।'

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