नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
ऐमिल : बादशाह सलामत ने नगरपालिका की माँगें भी मंजूर कर लीं और धता भी बता दिया, उधर हानूश को अन्धा बनाकर गिरजेवालों को भी खुश कर दिया।
कात्या : मैं हमेशा कहती रही, देखो हानूश, अपनी चादर देखकर पैर फैलाओ-नहीं तो, बड़े लोगों की लड़ाई में तुम कुचले जाओगे।
ऐमिल : वह न भी पड़ता तो भी कुचला जाता।
कात्या : क्यों कुचला जाता? क्या तुम कुचले गए हो? क्या बूढ़ा लोहार कुचला गया है? क्या हानूश का बड़ा भाई कुचला गया है?
ऐमिल : या तो तुम यह कहो कात्या, कि हानूश घड़ी ही नहीं बनाता। घड़ी बनाने का काम हाथ में ही नहीं लेता। कुफ़्लसाज़ था, कुफ़्लसाज़ ही बना रहता। लेकिन जो लोग कोई नया काम करेंगे, उन्हें तरह-तरह की जोखिमें तो उठानी ही पड़ेंगी। हानूश को अन्धा ही इसलिए किया गया कि महाराज सौदागरों और गिरजेवालों के बीच अपनी ताक़त को बनाए रखें।
कात्या : इसे मशविरे देनेवाले मज़े में ही रहे हैं, और वह कभी किसी का कन्धा पकड़कर तो कभी किसी का हाथ पकड़कर सड़कों की ख़ाक छानता फिरता है। (रो पड़ती है) पहले जब उसकी आँखें थीं तो सारा वक़्त घर पर बैठा रहता था। अब आँखें नहीं हैं तो सड़कों पर भटकता फिरता है, घर पर बैठ ही नहीं सकता।
ऐमिल : इसीलिए मैं तुम्हारे साथ बात करने आया हूँ, कात्या! अगर तुम उसका भला चाहती हो तो...
कात्या : अब मैं तुम्हारी कोई बात सुनना नहीं चाहती।
ऐमिल : हमें कोई-न-कोई क़दम तो उठाना ही पड़ेगा, वरना इस हालत में वह कैसे पड़ा रहेगा?
कात्या : तुम जो बात कहते हो, धमकी देकर कहते हो। मैं पहले से परेशान हूँ, तुम मुझे और भी परेशान करने चले आए हो।
ऐमिल : (धीमी, स्नेहसिक्त आवाज़ में, हालाँकि ऐमिल भावुक व्यक्ति नहीं है) तुम थोड़ा सोचो, कात्या। मैं जानता हूँ, तुम्हारे दिल पर क्या बीत रही है। पर यहाँ रहना हानूश के लिए नरक भोगने के बराबर है।
कात्या : उसे दुख है, मैं जानती हूँ, लेकिन उसके सिर पर छत तो है। बादशाह सलामत का दिया वज़ीफ़ा तो है जो वक़्त पर मिल जाता है। जैसे-तैसे दिन कट रहे हैं।
ऐमिल : तुम समझती हो, उसके लिए इस शहर में रहना आसान है? हर बार जब घड़ी बजती है तो उसके दिल पर छुरियाँ चलती हैं कात्या! ज़रा सोचो, तीन बार वह किसी-न-किसी बहाने उसे तोड़ने की कोशिश कर चुका है।
कात्या : क्या फिर उसने कोई बात की है?
ऐमिल : क्या यान्का ने तुम्हें नहीं बताया?
कात्या : नहीं! क्या हुआ? तुम लोग मुझसे छिपाते रहते हो। कोई भी अब मुझे कुछ नहीं बताता।
ऐमिल : कल फिर उसने घड़ी पर पत्थर फेंका था। यान्का को किसी बहाने उधर ले चलने को कहा और घड़ी के पास पहुँचकर...
कात्या : क्या पत्थर घड़ी को लगा?
ऐमिल : नहीं कात्या, अन्धा क्या पत्थर फेंकेगा! पत्थर सड़क के पार भी नहीं जा पाया। मगर तुम समझो, उसके मन की क्या हालत हो रही है।
कात्या : मैं यान्का और जेकब से कह दूंगी कि उसे चौक की तरफ़ नहीं ले जाया करें। जो भी उसे साथ में ले जाए, घड़ी की तरफ़ नहीं ले जाए।
ऐमिल : इससे क्या हानूश की परेशानी कम हो जाएगी? वह तो और भी ज़्यादा बढ़ेगी।
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