नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
कात्या : मैं क्या जानूँ, क्या होगा! जहाँ क़िस्मत ही फूट जाए...
ऐमिल : हम हाथ-पर-हाथ रखकर भी तो नहीं बैठ सकते, कात्या! हानूश के लिए यहाँ से चले जाना बहुत ज़रूरी है। उसे ऐसी जगह पर ले जाना चाहिए जहाँ वह घड़ी की आवाज़ ही नहीं सुन पाए।
कात्या : नहीं, तुम गलत कहते हो। तुम कुछ नहीं जानते। क्या तुम समझते हो, घड़ी की आवाज़ सुने बिना वह जी सकता है? घड़ी को लेकर वह कुढ़ता है, मन-ही-मन छटपटाता है, उसे तोड़ने की कोशिश भी करता है पर उसकी जान घड़ी में ही है। उसकी आवाज़ सुनकर ही वह जी रहा है। तुम उसे किसी दूसरी जगह ले जाओगे तो उसे लगेगा, जैसे उसे अन्धे कुएँ में फेंक दिया गया है।
ऐमिल : मैं भी यही कहता हूँ, कात्या! तुमने अब ख़ुद अपने ही मुँह से कह दिया कि हानूश घड़ी के बिना नहीं जी सकता।
कात्या : तुम कहना क्या चाहते हो? मुझसे पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो?
ऐमिल : कात्या, हानूश आँखों से अन्धा है, लेकिन उसके हाथ सही-सलामत हैं। उसकी सूझ क़ायम है। वह अभी बूढ़ा नहीं हुआ है। उसके बदन में ताक़त है...।
कात्या : फिर?
ऐमिल : अगर वह फिर से घड़ी बनाने के काम में लग गया तो उसका दुख दूर हो जाएगा, उसकी जान में जान आ जाएगी।
कात्या : (डर जाती है) तुम क्यों उसे काँटों में घसीट रहे हो? तुम जानते हो, उसे घड़ी बनाने की मनाही है। बादशाह सलामत का गुस्सा पहले ही बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है, अब दूसरी घड़ी बनाएगा तो न जाने कौन-सी गाज हम पर गिरेगी!
ऐमिल : इसीलिए यह ज़रूरी है कि वह यहाँ से चला जाए। चुपचाप यहाँ से निकल जाए।
कात्या : निकलकर कहाँ जाए? किसी दूसरे देश में जाकर घड़ी बनाएंगा तो बादशाह सलामत क्या उसे छोड़ देंगे? वह सारे परिवार को ज़िन्दा दफ़ना देंगे।
ऐमिल : तुम लोग भी उसके साथ जाओगे।
कात्या : बस, बस, मैं और सुनना नहीं चाहती।
ऐमिल : सुनो कात्या, तुला में वह सौदागर तुम लोगों को रहने के लिए मकान देगा। हानूश को बाक़ायदा वज़ीफ़ा मिलेगा। इसके साथ काम करने के लिए आदमी जुटाए जाएंगे। सामान जुटाया जाएगा। और वह फिर से अपने काम में लग जाएगा। फिर से घड़ी बनाने लगेगा, जो उसका हुनर है। हानूश अपना दुख भूल जाएगा।
कात्या : और बादशाह सलामत? क्या यह बादशाह सलामत के हुक्म की ख़िलाफ़वी नहीं होगी?
ऐमिल : बादशाह ने इसके साथ कौन-सी भलाई की है कि यह अन्धा बनकर भी उनका हुक्म बजा लाता रहे? उन्हीं के हुक्म से तो इसकी यह हालत हुई है।
कात्या : यह तुम क्या कहे जा रहे हो? तुम क्यों हमें बर्बाद करने पर तुले हुए हो?
ऐमिल : यह हानूश की ज़िन्दगी का सवाल है। उसकी हालत देखकर उसके बड़े-से-बड़े दुश्मन को भी उस पर रहम आएगा। और क्या हम मुँह बाए देखते रहें, और वह तिल-तिलकर मरता रहे? तुम्हें कुछ फ़ैसला तो करना ही होगा, कात्या! आज हानूश जहाँ जाएगा, लोग उसे पलकों पर बिठा लेंगे। जेकब उसके साथ होगा। वह घड़ी का सारा काम जानता है। जेकब उसकी आँखें होगा। दोनों मिलकर नई घड़ी बना लेंगे।
कात्या : मैं तो सोचकर भी काँप जाती हूँ। क्या तुमने हानूश से पूछा है?
ऐमिल : नहीं, मैं पहले तुमसे बात करना चाहता था। वह कोई भी फैसला कर पाने की हालत में नहीं है। हम उसके अपने हैं, उसकी भलाई के लिए हमें ही सोचना होगा।
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