नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
ऐमिल : तुला से आया है। अक्सर आता रहता है।
कात्या : हम यहाँ से चले जाएँगे ऐमिल।
ऐमिल : अगला महीना तीर्थयात्रा का महीना है। तुम लोग भी तीर्थयात्रा के बहाने यहाँ से निकल जा सकते हो।
कात्या : तीर्थयात्रा! अन्धा हानुश किसके दर्शन करने जाएगा?
(मानो अपने से बात कर रही हो।) हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है।
[गली में हलका-सा शोर। हानूश का प्रवेश।]
हानूश : कात्या, मुझे कोई चोट नहीं आई, फ़िक्र की कोई बात नहीं। तुम कहाँ हो, कात्या?
[कात्या हाथ आगे बढ़ाकर हानूश को थाम लेती है।]
हानूश : कुछ गाड़ीवान भी इस तरह घोड़ों को दौड़ाते हैं, इतना भी नहीं देखते कि कोई भला आदमी सड़क लाँघ रहा है।
कात्या : तुम बैठ जाओ। इधर आकर बैठ जाओ।
हानूश : अब मुझे क्या मालूम था कि झट से बादशाह सलामत की सवारी इधर से आ जाएगी! इसी तरह तो हादसे होते हैं।...तुम चुप क्यों हो कात्या? जब भी तुम मुझ पर नाराज़ होती हो, चुप्पी साध लेती हो। इसमें सचमुच मेरा कोई दोष नहीं है। गाड़ी अचानक एक ओर से आ गई। बच्चों से पूछ लो, ये लोग भी हैरान रह गए। जेकब तो मुझे पीछे खींचता रह गया।
कात्या : (आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लेती है) ठीक है, ठीक है, तुम कुछ मत कहो। आराम से बैठ जाओ।
हानूश : तुम नाराज़ हो, मैं जानता हूँ। तुम समझती हो, मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देख सकता। तुम्हारा चेहरा सारा वक़्त मेरी आँखों के सामने रहता है। जब तुम नाराज़ होती हो तो तुम्हारे चेहरे की एक-एक शिकन मैं देख सकता हूँ।
[कात्या उसका सिर सहलाती है। मुस्कुराती है।]
हानूश : मैं जानता हूँ, तुम मेरा दिल रखने के लिए मुस्कुरा रही हो।
कात्या : तुम्हें तो मालूम था कि वह बादशाह सलामत की गाड़ी थी।
हानूश : मैंने सोचा, बादशाह सलामत की सवारी आ रही है, आगे बढ़कर आदाब बजा लाऊँ। अब कात्या, यह तो नहीं हो सकता कि बादशाह सलामत की सवारी गुज़रे और मैं आदाब भी नहीं बजा लाऊँ ?
कात्या : अभी कह रहे थे कि अचानक कोई गाड़ी उधर से आ गई, अब कह रहे हो, बादशाह सलामत की सवारी आ रही थी।
हानूश : कहती तो तुम ठीक हो, मगर अब मुझे ठीक-ठीक याद नहीं, मैं गिर जो गया था, और घुटनों पर चोट आई थी।
कात्या : (हानूश का सिर सहलाते हुए) तुम मेरे साथ छल-फ़रेब नहीं किया करो।
हानूश : (कात्या का हाथ पकड़कर) तुम्हारे साथ छल करूँगा, कात्या?
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