लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126718801

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

326 पाठक हैं

आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


[वह अत्यधिक व्यग्र और उत्तेजित हो उठता है। अपने-आप आगे को बढ़ता है और ठोकर खाकर गिरते-गिरते बचता है।]

जेकब! जेकब! कहाँ हो तुम? घड़ी बन्द हो गई है। कहाँ गया है जेकब? ज़रूर घड़ी बन्द हो गई है। ज़रूर पुों को जंग लगता रहा है। मीनार में सीलन थी। मैंने पहले ही कहा था, मीनार में सीलन है।

कात्या : (आगे बढ़कर) बन्द हो गई है तो तुम्हारी बला से! अच्छा हुआ जो बन्द हो गई। तुम भी तो यही चाहते थे कि बन्द हो जाए। वह अपने-आप ही बन्द हो गई।

हानूश : हाँ, अच्छा हुआ, बन्द हो गई। मेरी बला से। दो साल भी नहीं चली। कोई पुर्जा टूट गया होगा। मगर कौन-सा पुर्जा ? चलो, अच्छा हुआ, अपनी मौत मर गई। हम दोनों में होड़ चल रही थी कि पहले कौन दम तोड़ता है...नीचे धुरे में भी जंग लग गया होगा। मीनार में सीलन थी। चलो, अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ।

कात्या : बैठो हानूश, मैं तुम्हारे साथ एक बहुत ज़रूरी मसले पर बात करना चाहती हूँ। हम सब लोग यहाँ से जा रहे हैं। हम यह शहर छोड़ रहे हैं।

हानूश : क्या कहा? क्यों? क्या बादशाह सलामत की ओर से कोई हुक्मनामा आया है? क्या महाराज ने देशनिकाला दे दिया? क्या भाईजान ने कुछ कहा है?

कात्या : नहीं हानूश, मैंने फैसला किया है कि हम लोग यहाँ पर नहीं रहेंगे। यहाँ से चले जाएँगे। तुला में जाकर रहेंगे।

हानूश : तुला में! तुला में क्यों?

ऐमिल : हम तुला में जाएँगे और वहाँ पर तुम दूसरी घड़ी बनाओगे।

हानूश : तुम क्या कह रहे हो, ऐमिल ? अन्धे के साथ मज़ाक कर रहे हो?

ऐमिल : हमने सब सोच लिया है।

हानूश : अब इन आँखों से मैं घड़ी बनाऊँगा? तुम यह क्या कह रहे हो? हमें वहाँ जाने कौन देगा? यह कौन-सा नाटक खेल रही हो, कात्या?

कात्या : मैं कोई नाटक नहीं खेल रही हूँ, हानूश! मैं सच्चे दिल से चाहती हूँ कि हम लोग यहाँ से चले जाएँ। तुम वहाँ कुछ काम करोगे, यहाँ पड़े-पड़े क्या करोगे?

हानूश : मेरी पीठ पीछे फ़ैसले करते हो, मुझसे पूछा तक नहीं! ये सब फ़िजूल बातें हैं। अब घड़ी नहीं बन सकती।...जो घड़ी बनाई भी थी, वह भी चुप हो गई है। ज़रूर अन्दर से टूट-फूट गई है, वरना चुप क्यों हो जाती? मुझे इस काम से नफ़रत हो गई है।

कात्या : दिन में दो-तीन बार जब तक घड़ी के चक्कर नहीं लगा लो, तुम्हें चैन नहीं मिलता, मुझसे क्या छिपा है?

[गली में चलते क़दमों की आवाज़। लोग बातें कर रहे हैं :]

'हानूश की घड़ी बन्द हो गई है।'

'बन्द हो गई है! तुमने कैसे जाना?'

'सैकड़ों यात्री देर से मीनार के सामने खड़े हैं। सुइयाँ खड़ी-की-खड़ी हैं। न मुर्ग ने बाँग दी है, न सन्त दर्शन देते हैं। घड़ी बिलकुल चुप है।'

ऐमिल : सुनो जी, तुम क्या कह रहे हो? क्या घड़ी बन्द हो गई है?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book