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नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126718801

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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


आवाज़ : हाँ, बन्द हो गई है। चौक पर यात्रियों की भीड़ लगी है।

हानूश : (उठ खड़ा होता है) मैंने कहा था न, घड़ी बन्द हो गई है। जेकब कहाँ है? जेकब?

[उत्तेजित है, तन-बदन से काँप रहा है।]

कात्या, जेकब कहाँ है? उससे कहो कि जाकर देखे, घड़ी को क्या हुआ है।

कात्या : (उठकर उसके पास जाती है) अब तुम्हें क्या पड़ी है हानूश? जो बन्द हो गई है तो तुम क्या कर सकते हो?

हानूश : हाँ, मैं कर ही क्या सकता हूँ! यों केवल जानना चाहता था कि क्यों टूटी है। मैं कर ही क्या सकता हूँ! ज़रूर धुरा टूटा होगा। मुझे उस वक़्त भी शक था कि धुरा कमज़ोर है। मगर दो बरस में ही धुरा कैसे टूट गया? और मैं सोचे बैठा था कि मेरे मरने के बाद भी घड़ी चलती रहेगी।...क्या जेकब नहीं लौटा?

[सीढ़ियों पर क़दमों की आवाज़]

जेकब आ गया है। जेकब, तुम सीधे चौक में जाओ। देखो तो क्या बात है! घड़ी बन्द हो गई है।

[दरवाज़ा खुलने पर दहलीज़ पर सरकारी अधिकारी खड़ा है-गठीला, कठोर, निर्मम चेहरेवाला। उसके पीछे उसका सहायक अधिकारी है।]

अधिकारी : हानूश? हानूश कुफ़्लसाज़ ?

[सब चुप हो जाते हैं। ऐमिल आगे बढ़ता है।]

ऐमिल : फरमाइए!

अधिकारी : हानूश! आपको बड़े वज़ीर ने तलब किया है। आप हमारे साथ चलिए।

ऐमिल : बड़े वज़ीर ने तलब किया है! क्या बात है?

अधिकारी : हमें हुक्म हुआ है कि हानूश कुफ़्लसाज़ को अपने साथ लेकर आएँ। घड़ी बन्द हो गई है। इसी के सम्बन्ध में आपको बुलाया है।

हानूश : (आगे बढ़कर) घड़ी बन्द हो गई है, इसका मुझे भी अफ़सोस है, लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?

अधिकारी : यह हम नहीं जानते। आपको जो कुछ कहना हो, बड़े वज़ीर से कहिए। आप हमारे साथ चलिए। बड़े वज़ीर जानना चाहते हैं कि घड़ी क्यों बन्द हो गई है।

हानूश : मैं क्या जानूँ जनाब, घड़ी क्यों बन्द हो गई है? उसमें ज़रूर कोई नुक़्स पैदा हो गया होगा। मैं उन्हें क्या बता सकता हूँ कि क्यों बन्द हो गई है!

अधिकारी : यात्रा के दिनों में हज़ारों लोग घड़ी देखने के लिए देश में आए हैं, इधर घड़ी ने चलना बन्द कर दिया है। बादशाह सलामत इस पर बहुत नाराज़ हैं।

हानूश : जब से मेरी आँखें नुचवा दी गई हैं, मैंने घड़ी को नहीं देखा है, केवल उसकी आवाज़ सुनी है। अब वह बन्द हो गई है तो मैं इसमें क्या कर सकता हूँ?

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