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भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

ओम प्रकाश पांडेय

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :9789351869511

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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....


इसके अतिरिक्त भारत में व्यवहृत पंचांगों में भी 'वर्तमानोवैवस्वतमनुस्तस्य  प्रवृत्तस्य सप्तविंशतिमितानि महायुगानि व्यातीतानि अष्टाविंशतितमे युगे, त्रयो युगचरणा गताः चतुर्थो चरणे कलौ कलेरारंभतो तवनवत्युत्तरपंचसहस्त्रमितानि 5104 वर्षाणि व्यतीतानि' के माध्यम से इन्हीं तथ्यों की पुष्टि की गई है। मिन, पारसी, यहूदी, ईसाई, मुसलिम आदि मतावलंबी जब अपनी सभ्यताओं के प्रतीकस्वरूप प्रचलित अपने संवत्सरों को प्रामाणिक मानते हैं, ऐसी स्थिति में 'विश्वगुरु' के गरिमामयी पद पर अधिष्ठित रहे भारतीयों तथा विश्व के अन्य समुदायों को प्रसिद्ध गणितज्ञ बेली के गणन-सूत्रों की कसौटी पर खरे उतरे, भारतीय पंचांगों की तथ्यात्मक गणितीय विश्वसनीयता को किसी किंतु-परंतु के स्वीकार करना ही चाहिए।

इस तरह गणना-सूत्रों की जानकारी प्राप्त कर लेने के पश्चात् मानव-सापेक्ष घटनाओं का ठीक-ठीक हिसाब रखने के लिए सौर तथा चंद्र पद्धतियों का समन्वय करते हुए संवत्सरों की रचनाएँ की गईं और तदनुसार आजकल के प्रचलित पंचांग स्वरूप में आए। प्रति राशि सूर्य की स्थिति के बारह मासों के एक सौर-वर्ष में कुल 365 दिन, 15 घड़ी, 31 पल तथा 30 विपल होते हैं, जबकि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक के बारह मासों का एक चांद्र-वर्ष कुल 354 दिन, 22 घड़ी, 1 पल व 24 विपल में पूरा होता है। इस प्रकार प्रतिवर्ष 10 दिन, 53 घड़ी, 30 पल व 6 विपल के साथ पौने तीन वर्षों में कुल तीस दिन का अंतर पड़ जाता है। चूंकि पृथ्वी के गति-चक्र के कारण प्रति तैंतीसवें सौर मास में सूर्य का राशि परिवर्तन (संक्रांति) नहीं होता है। अतः प्रति 32 मास, 16 दिन व 4 घड़ी के पश्चात् अधिक मास (पुरुषोत्तम /मलमास) की कल्पना करते हुए 33/34 के अनुपात से सौर व चांद्र मासों का प्रति तीन वर्षों में समन्वय करते हुए वर्ष-चक्रों में पड़नेवाले इस अंतर को नियमित किया गया।

इन सभी गणन-सूत्रों के आधार पर भारतीय कालगणना का जो स्वरूप उभरकर सामने आया है, वह इस प्रकार से बनता है-

(क) मानुषी परिमाण

1 परमाणु - एक सेकेंड का 3,79,675 वाँ हिस्सा
2 अणु    - 1 त्र्यसरेणु
3 त्र्यसरेणु - 1 त्रुटि
100 त्रुटि - 1 वेध
3 वेध - 1 लव
3 लव - 1 निमेष (आँख झपकने का काल-(0.17 सेकेंड)
3 निमेष - 1 क्षण (0.51 सेकेंड)
5 क्षण या 16 विपल- 1 कष्ट
15 कष्ट- 1 लघु /कला (1 मिनट 36 सेकेंड)
15 लघु/कला या 60 पल - 1 घटिका (24 मिनट)
30 कला/2 घटिका- 1 मुहूर्त (48 मिनट)
3/3/4 मुहूर्त- 1 प्रहर (तीन घंटा)
60 घटिका/30 मुहूर्त/8 प्रहर - 1 अहोरात्रि (दिन/रात-24 घंटा)
15 अहोरात्रि - 1 पक्ष
2 पक्ष (कृष्ण पक्ष-पितरों का दिन - 1 मास तथा शुक्ल पक्ष-पितरों की रात)
2 मास- 1 ऋतु
3 ऋतु - 1 अयन
2 अयन या देव अधोरात्रि
(उत्तरायण-देवो - 1 सौर वर्ष (छह ऋतु-वसंत, ग्रीष्म, वर्षा,
का दिन यानी 23 दिसंबर शरद, हेमंत तथा शिशिर) या 360 अधोरात्रि से 20 जून व दक्षिणायण-देवों की रात यानी 21 जून से 22 दिसंबर तक की अवधि)

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