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भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

ओम प्रकाश पांडेय

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :9789351869511

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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....


(ख) खगोलीय परिमाण

360 सौर (मानव) वर्ष - 1 देव (विश्वदेवों का) वर्ष 12000 देववर्ष - 1 महायुग या चतुर्युगी (सत्, त्रेता, द्वापर व कलि-43,20,000 सौरवर्ष)
71.42857129 चतुर्युगी - 1 मन्वंतर (30,85,71,429.9 सौरवर्ष)
1000 चतुर्युगी/14 मन्वंतर
(स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस,
रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि,
दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि,
रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि व
इंद्रसावर्णि) - - 1 कल्प (4,32,00,00,000 सौरवर्ष यानी
सूर्य व उसके सौरमंडल की आयु)
2 कल्प -  - 1 ब्रह्म अहोरात्रि (ब्रह्मांड का एक दिन /रात)
360 ब्रह्म अहोरात्रि - 1 ब्रह्मवर्ष (72) कल्प)
12/1/2 ब्रह्मवर्ष  - 1 ब्रह्म युग (9000 कल्प-शकधूम या
आधुनिक भाषा में व्यवहृत-आकाशगंगा की आयु)
ब्रह्मा (ब्रह्मांड) की आयु- 100 ब्रह्म वर्ष (72,000 कल्प)

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