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भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

ओम प्रकाश पांडेय

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :9789351869511

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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....


सृष्टि-प्रारंभ - 15,55,21,97,19,61,681 वर्ष
पृथ्वी संवत् (पृथ्वी की आयु) - 1,97,29,49,104
वर्ष वैवस्वत संवत् (पृथ्वी पर वनस्पति-सृष्टि) 12,05,33,104 वर्ष
चीनी संवत् 9,60,02,495 वर्ष
खताई संवत्- 8,88,40,375 वर्ष
आदि ब्रह्मा (मानवी) संवत् 3,41,33,003 वर्ष
काल्डियन संवत्- 4,70,035 वर्ष
कमलवत् ब्रह्मा (प्रथम ज्ञात पुरुष) संवत् - 1,95,104 वर्ष
ईरानियन संवत् 1,89,982 वर्ष
पारसी संवत्- 1,89,970 वर्ष
मिस्त्र राज्य स्थापना संवत् 28,656 वर्ष
कालयवन संवत् (डायोनीसियस) 6,045 वर्ष
इबरानियन संवत् 6,006 वर्ष
यहूदी संवत् 6,007 वर्ष
युधिष्ठिर संवत् (भारत युद्ध से व्यतीत काल) 5,140 वर्ष
कलि संवत् (परीक्षित के समय से व्यतीत काल) 5,104 वर्ष
अब्राहम (इब्राहिम) संवत् 3,923 वर्ष
मूसा के धर्मप्रचार का संवत्  3,572 वर्ष
यूनानी संवत् 2,769 वर्ष
शुद्रक (मालवांचल में) संवत् - 2,759 वर्ष
रोम संवत् - 2,755 वर्ष
बुद्ध संवत् - 2,546 वर्ष
महावीर संवत् - 2,529 वर्ष
पारद संवत् (पंजाब से
पश्चिमोत्तर में मान्य रहा) 2,249 वर्ष
विक्रमादित्य संवत्  2,060 विक्रमी
यूरोप में ईसा का संवत् 2,003 ईसवी
भोज संवत् 1,975
शालिवाहन संवत् 1,925 वर्ष
बल्लभी (काठियावाड़ में प्रचलित) संवत् 1,683 बल्लभी 
इसलामिक संवत् 1,422 हिजरी
बांग्ला संवत् 1,411 बंगाल्द
कोल्लम संवत् 1,179 कोल्लम वर्ष
भारतीय गणराज्य संवत् 54 गणतंत्र वर्ष

वस्तुतः मानव सापेक्ष इन कालमापक इकाइयों द्वारा ही सृष्टि उद्भव, प्राणी अस्तित्व तथा सभ्यताओं व संस्कृतियों की क्रमिक विकास-यात्राओं का सहज अनुमान लगाकर इन्हें काल-खंड विशेषों में नियमित किया जा सकता है। अतः खगोल-प्रमाणित पूर्वजों की इस अनुपम थाती को गर्व के साथ आत्मसात् करते हुए भावी पीढ़ी के लिए सँजोए रखने का हमारा गुरुतर दायित्व बनता है।

कालगणना में सिद्धहस्त हो जाने के पश्चात् मनुष्यों की उत्सुकताएँ सृष्टि में घटनेवाली हर छोटी-बड़ी घटनाओं के कारण व कारक पर आकर केंद्रित हो गईं। रचना व विघटन प्रकृति का नियम है। रचना का आशय सृष्टि से व विघटन यानी प्रकृति के लय होने की दशा को प्रलय के नाम से चिह्नित किया गया है। द्रष्टव्य जगत् का प्रकृति में विसर्जन होना एक बड़ी घटना मानी जा सकती है; किंतु मानवों का सरोकार उसके जीवनकाल में घटित होनेवाली प्राकृतिक त्रासदियों से रहता है। अतः परिणाम की गुरुता के अनुसार घटित इन त्रासदियों को मानवों ने विभिन्न नामों से पुकारा और फिर अपने अनुभवों के आधार पर इन घटनाओं में से कुछ की पुनरावृत्ति की निश्चित अवधियों को निर्धारित करने का प्रयास किया। विश्व के प्रायः सभी प्राचीन ग्रंथ अपने मापदंडों के आधार पर प्रलय की इन घटनाओं को अलग-अलग ढंग से रेखांकित करते हैं।

शास्त्रों, ग्रंथों व भूगर्भीय अन्वेषणों पर आधारित विश्व की विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं के साथ-साथ खगोलीय कारणों से पृथ्वी पर हर 26000 वर्ष के अंतराल पर घटनेवाली हिमयुगीन त्रासदियों तथा ग्रीनहाउस गैसों के कारण भूमंडलीय तापमान के बढ़ते आसारों से समुद्र के जलस्तरों में होनेवाले अनुमानित उछालों पर भी इस अध्याय में विस्तृत चर्चा की गई है।

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