भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1 द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1ओम प्रकाश पांडेय
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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....
भारतीय वृत्तांतों में युगांतर प्रलय के पश्चात् कमलवत् भूमि का जल से बाहर
उभरना व फिर प्राकृतिक (उत्तरी गोलार्ध में घटित हिमयुगों के) कारणों से
सप्तऋषियों एवं उत्तानपाद शाखा के दृढ़व्रत आदि उत्तराधिकारियों का ध्रुव से
दक्षिण के क्षेत्रों में विस्थापित होना तथा तारकासुर संग्राम के काल से लेकर
मान्धाता (माण्डाटे), सत्यव्रत (त्रिशंकु), राम और कृष्ण (गोवर्धन पर्वत धारण
करनेवाली घटना) के कालों में अलग-अलग हुए निरंतर बारह वर्षों के अतिवृष्टियों
के संदर्भ भी निश्चित रूप से क्रमिक अंतरालों पर घटित होनेवाली इन नित्य
प्रलयों की ओर ही संकेत करते प्रतीत होते हैं। अकेले महाभारत में ही युगांतर
तथा नित्य प्रलयों के कुल 195 दृष्टांतों का उल्लेख हुआ है। पुरातत्त्व
सर्वेक्षणों में पाए गए साक्ष्य भी कुछ इसी तरह की घटनाओं के घटित होने की
पुष्टि करते हैं। उन्नीसवीं शताब्दी में उत्तरी साइबेरिया के बर्फीले
क्षेत्रों में पाए गए मृत जानवरों के शीलीभूत ढेर तथा उनके आमाशयों में
सुरक्षित अधपके भोज्य पदार्थ ईसा पूर्व लगभग 9000 के आस-पास अचानक ही घटित
किसी भयंकर त्रासदी के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इसी प्रकार प्रो. एल्वर्ट
गाडरी द्वारा की गई एक खोज में लॉस एंजिल्स (कैलिफोर्निया) के निकट मिले बाघ,
हाथी, ऊँट, घोड़े आदि प्रवासी व अन्य विशालकाय जानवरों के अस्थि-पुंज
उपर्युक्त काल के आस-पास घटित किसी विश्वव्यापी उथल-पुथल का ही संकेत देते
हैं। इसी क्रम में मिस्र के अबाइडॉस क्षेत्र तथा यूनान में हुए उत्खननों से
पुरातत्त्ववेत्ताओं को इन क्षेत्रों में ईसा पूर्व क्रमशः 8000 व 6000 के
आस-पास घटित आंशिक प्रलयों के प्रमाण मिले हैं। अब तक हुए विभिन्न पुरातत्त्व
सर्वेक्षणों से यह निष्कर्ष भी निकलता है कि उपर्युक्त कालखंड के लगभग तीन
सहस्राब्दि के पश्चात् विश्व के विभिन्न अंचलों में प्राकृतिक उथल-पुथल की
कुछ भयानक घटनाएँ पुनः घटित हुई थीं। इसी तरह के मिले एक साक्ष्य के अनुसार
ईसा पूर्व लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष से प्रारंभ हुए तीन सौ वर्षों के लगातार
सूखा व दुर्भिक्ष के कारण सीरिया, जॉर्डन समेत अरब प्रदेश का जन-जीवन ही
प्रभावित नहीं हुआ था, बल्कि इसके परिणामस्वरूप लाल सागर से पूर्व का अधिकतर
क्षेत्र रेगिस्तान (मरुथल) में परिवर्तित भी हो गया था। सुमेरिया (इराक के
तटवर्ती क्षेत्रों) में हुई खुदाई से प्राप्त तलछट, 3200 वर्ष ईसा पूर्व यहाँ
घटित बाढ़ के प्रकोप का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। मध्य अमेरिका की मयांस
सभ्यता में भी 3113 वर्ष ईसा पूर्व घटित एक बाढ़-विभीषिका की चर्चा की गई है।
भारतीय आख्यानों में अतिवृष्टि के कारण कृष्ण का गोवर्धन पर्वत धारण करने का
संदर्भ तथा कलियुग का प्रारंभ व द्वारिका की जल-समाधि आदि घटनाओं का काल (ईसा
पूर्व 3103 वर्ष) भी उपर्युक्त अवधि (ईसा पूर्व चौथी सहस्राब्दि के अंतिम
चरणों) के आस-पास का ही बैठता है।
उपर्युक्त वर्णित इन प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त जल-प्लावन (Deluge) की एक
अभूतपूर्व घटना विशेष का उल्लेख विश्व के प्रायः सभी धर्म ग्रथों तथा
सभ्यताओं में समान रूप से किया गया है। कालगत व भाषागत कारणों से नामों में
आई भिन्नताओं के उपरांत भी भारतीय 'मनु' की ही भाँति जेंद अवेस्ता (पर्शिया
या पुराने ईरान) के 'यिम' (यानी भारतीय 'यम' या पाश्चात्य मान्याओं के अनुसार
'एडम/आदम'); सुमेरियन 'नापश्तिम'; यूनानी-रोमन गाथाओं के 'डियुकेलियन';
यहूदी, ईसाई व इसलामिक 'नोह /नूह'; युक्तान की एजटिक मान्यताओं के 'तेजपि' या
फिर ब्राजील, पैरागुआ तथा अर्जेंटीना आदि 'गुआरैनी गाथाओं' के टे-मेंडर ने
बाढ़ की विभीषिकाओं से प्रायः एक जैसे ही उपायों द्वारा कुछ जैविक प्रजातियों
की रक्षा एवं उन्हें पुनर्स्थापित करने का कार्य किया था। 'Mysteries from
Forgotten World' नामक अपनी पुस्तक में चार्ल्स बर्लिट्ज विश्व-व्यापी
जलप्रलय की इस कथा की व्याख्या मानवीय सभ्यताओं की साझी विरासतों के रूप में
ही करते हुए प्रतीत होते हैं। उनके अनुसार- 'Through out the World there are
certain legends or traditions, so similar in basic content that it is hard
to believe that they did not have a common origin. The most dramatic among
these is the flood legend. From ancient India to ancient America, through
all the intervening lands going both ways around the World, we find this
same pattern of recurring Catastrophe that almost wiped out mankind
leaving on earth but a few survivors who escaped the common doom by hiding
in caves, seeking refuge on high mountains or floating it out in boats or
arks. In most traditional cases the survivors comprised one choosen man,
accompained by one or more women, sometimes with families and some times
with a selection of animals and birds, varying in spices according to the
part of earth where the legend was in current. Although there seems to be
no linguistic connection between the names of the Survivors, but in each
tradition they returned to start afresh the difficult upword climb to
civilization in almost similar fashion." चूंकि विश्व के विशिष्ट धर्मों तथा
अधिकतर सभ्यताओं के उद्भव-स्थल एक क्षेत्र विशेष (कर्क रेखा से उत्तर के
क्षेत्र) ही रहे थे, अतः भारतीय तथा इनके ग्रंथों में वर्णित संदर्भो के आधार
पर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि जलप्लावनों की इन घटनाओं का संबंध
संभवतः अरल, कश्यप, अजोब, काला, बासपोरस, भूमध्य व लाल सागरों तथा फारस की
खाड़ी के मध्य घिरे हुए क्षेत्रों या फिर मेक्सिको की खाड़ी या दक्षिणी
अमेरिका के पूर्वी तटों पर घटित किन्हीं भयानक जल भरावों से ही रहा होगा।
इनके फलस्वरूप मिन, जॉर्डन, तुर्की, पीरिया, अर्मेनिया, जार्जिया व अजरबैजान,
ईरान, इराक, उजबेकिस्तान व अफगानिस्तान समेत युक्तान व दक्षिण अमेरिका के
पूर्वी तटों का समूचा क्षेत्र परिस्थिति व काल के अनुरूप जलमग्न होता रहा
होगा। प्रकरांतर में किसी तरह से बच निकले कुछ उत्तरजीवियों व उनके आश्रितों
को छोड़कर प्रभावित क्षेत्रों की शेष जैविक सृष्टियाँ विनाश को प्राप्त होती
रही होंगी।
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