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भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1

ओम प्रकाश पांडेय

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :9789351869511

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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....

इतिहास


व्यावहारिक दृष्टि से 'इतिहास' व 'हिस्ट्री' शब्दों का प्रयोग विगत कालों के लिए ही किया जाता है, किंतु शब्द-व्युत्पत्तियों के आधार पर निष्पक्ष अर्थभेद इनके पर्यायवाची होने की प्रासंगिकता पर ही प्रश्नचिह्न लगा देते हैं। पंद्रहवीं शताब्दी में लैटिन के रास्ते आंग्ल भाषा में व्यवस्थापित हुई 'हिस्ट्री' की व्युत्पत्ति ग्रीक मूल के 'हिस्टोरिया' से ही हुई थी, जिसका शाब्दिक आशय ‘अध्याहरण' या 'जाँच-पड़ताल' (Learning or Knowing by inquiry) ही बनता है। ग्रीक मूल (Historia) के इस भावार्थ के विपरीत 'ऑक्सफोर्ड शब्दकोश' में History को परिभाषित करते हुए इसे "The branch of knowledge dealing with past events of a person, a thing, a country, a continent or the world" या फिर अन्य शब्दकोशों में कहीं-कहीं इसे "Methodical records of past events & times especially relating to the human races." के रूप में भी उल्लेखित किया गया है। उपर्युक्त संदर्भो के परिप्रेक्ष्य में 'हिस्ट्री' के आनुवंशिक भावार्थ तथा इसके प्रचलित आशय में विद्यमान असमानता के स्वाभाविक मंतव्यों को बहुत ही सहजता से अनुभव किया जा सकता है। वस्तुतः विगतकालीन लेखा-जोखा के सम्यक् आकलनों हेतु जाँच-पड़ताल को एक आधार के रूप में स्वीकार तो किया जा सकता है, किंतु व्यावहारिक रूप से प्रयोग किए जा रहे अपने नव-परिभाषित आशय को प्रतिध्वनित करने की शाब्दिक क्षमता ग्रीक मूल के इस 'हिस्ट्री' शब्द में कहीं से भी झंकृत नहीं होती है। शब्दकोशीय मुखौटे से आवृत इस आंग्ल शब्द के विपरीत ‘इति' (ऐसा ही) +. 'ह' (निश्चयपूर्वक) + 'आस्' (हुआ था) के समुच्य आशय से निर्मित संस्कृत का 'इतिहास' शब्द अपने भावार्थ को स्वतः ही पूर्ण परिपक्वता प्रदान करता दिखता है (इति ह शब्दः पारंपर्योपदेशेऽव्ययम् इति हास्तेऽस्मिन्नितिहासः-सर्वानंद कृत टीकासर्वस्व से)। इस प्रकार 'इतिहास' का यह भारतीय भाव बिना किसी लाग-लपेट या शब्दकोशीय बैसाखियों के अपने स्वयं के बूते पर 'विगतकालीन घटनाओं के तथ्यात्मक वर्णन' के निहित अर्थों को व्यक्त करने में सक्षम सिद्ध होता है। 'Indian Wisdom' नामक अपनी पुस्तक में 'So indeed it was; talk, legend, tradition and heroic or traditional accounts of former events' fagyott द्वारा Iti-hasa (इति-ह-आस्) के भारतीय मंतव्यों को अपने ढंग से दरशाने के उपक्रम में पाश्चात्य विद्वान् सर मोनियर विलियंस (Sir Monier Williams) ने 'talk' (गप्प) व 'legend' (कहानी) जैसे संकुचित शब्दों का प्रयोग करके जाने-अनजाने में अपने वाक्य-लय में व्यतिक्रमों (Synchysis) को ही उपस्थित किया है। जबकि भारतीय संदर्भो में वर्णित आशयों के अनुसार कल्पित, संदिग्ध या मानुषी वृत्तियों के एकांगी भावों के विपरीत इतिहास का तात्पर्य निश्चित रूप से घटित पूर्वकाल के मानवीय तथा अमानवीय घटनाओं के परिदृश्यों को सम्यकता से उपस्थित करना होता है। इसी भावानुरूप 'निरुक्तभाष्यवृत्ति' में इतिहास शब्द की व्याख्या करते हुए भाष्यकार इसे 'इति हैवमासीदिति यः कथ्यते स इतिहासः' (अर्थात् जिसके लिए यह कहा जा सकता हो कि यह निश्चित रूप से इसी प्रकार घटित हुआ था, वही इतिहास है) के प्रामाणिक अर्थों से अलंकृत करता है।

इस तरह परिभाषागत आधारों पर इतिहास का शाब्दिक अस्तित्व जहाँ पूर्वकालीन घटनाओं के समूचे विवरण को अपने में समेटे हुए ही उद्भाषित होता है, वहीं देश-काल के अनुसार वर्णित पुरानी वृत्तियों के सभी संदर्भो को इसके विभिन्न अंगों के रूप में ही चिह्नित किया जा सकता है। किंचित् इतिहास के इन्हीं वैशिष्ट्य को रेखांकित करने के ही उद्देश्य से आचार्य विष्णुगुप्त कौटिल्य ने पुराण, इतिहास, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र व अर्थशास्त्र आदि को इसके स्वरूपों के तौर पर अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में उल्लेखित किया है (पुराणं इतिवृत्तं आख्यायिका च उदाहरणं, धर्मशास्त्रं अर्थशास्त्रं चेति इतिहासः)। भारतीय शास्त्रों में विगतकालीन घटनाओं की अभिव्यक्ति से संबंधित नैसर्गिक लक्षणों के आधार पर 'इतिहास' के निम्नांकित भेद किए गए हैं-

1. पराकृत्य-अति प्राचीनकाल की घटनाओं से संबंधित पुरानी रचनाओं को पराकृत्य की संज्ञा से उद्बोधित किया जाता है। वायु पुराण (59/137) में 'यो ह्यत्यन्तपुरोक्तश्च पुराकल्पः स उच्यते, पुरा विक्रान्तवाचित्वात्पुराकल्पस्य कल्पना' के द्वारा इसकी व्याख्या की गई है।

2. पुरावृत्त-ऋषियों द्वारा पूर्वकाल में कहे गए वृत्तांतों के पुनश्च उल्लेख को पुरावृत्त (अर्थात् पुरानी वृत्तियाँ) कहकर संबोधित किया जाता है। शौनकीय वृहदेवता (4/46) में 'इतिहास पुरावृत्तं ऋषिभिः परिकीर्त्यते' तथा अमरकोष (1-6-4) में 'इतिहास पुरावृत्तमुदात्ताधास्त्र्यः स्वराः' के वाक्य विन्यास द्वारा इसे परिभाषित किया गया है।

3. ऐतिह्य-उन परंपरागत कथनों को, जिनमें वक्ता का नाम निर्दिष्ट नहीं रहता है, ऐतिह्य कहलाता है (अनिर्दिष्टप्रवक्तृकं प्रवादपारम्पर्यमिति होचुर्वृद्धाऽइत्यैतिह्यम्-रत्नाकर)।

4. परकृति--किसी अन्य व्यक्ति द्वारा वर्णित निश्चयात्मक घटनाओं के उद्धरणों को दूसरे की रचना या परकृति कहकर व्यवहृत किया जाता है (अन्यस्यान्यस्य चोक्तत्वाद् बुधाः परकृतिः स्मृताः-वायु पुराण-59/136)।

5. इतिवृत्त-ग्रंथ, शास्त्र या नाटक आदि के पूर्वपृष्ठ पर वर्णित विषय संबंधी संक्षिप्त विवरणों (Preface) को इतिवृत्त कहा जाता है।

6. आख्यान-अभिनय, पाठ व गायन द्वारा अल्प समय में ही किसी विशिष्ट पुरुष की जीवनी पर प्रकाश डालने की विधि को आख्यान के नाम से पुकारते हैं (आख्यानकसंज्ञां तल्लभते यद्यभिनयन् पठन गायन-आचार्य हेमचंद्र कृत विवेक से)। आख्यान के मुख्य पात्र से संबंधित किसी विशेष घटना के सविस्तार वर्णन को 'उपाख्यान' व प्रकारांतर कहे गए अन्य विवरणों को ‘अन्वाख्यान' कहा जाता है।

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