भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1 द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1ओम प्रकाश पांडेय
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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....
7. चरित-महापुरुषों के अनुकरणीय जीवनियों के आद्योपांत वृत्तांत को चरित कहकर
परिभाषित किया जाता है। इस श्रेणी की रचनाओं में 'पुरुरवा-चरित',
'ययाति-चरित' व 'नहुष-चरित' जैसे आदि-ग्रंथों को तथा मर्यादा पुरुषोत्तम राम
की जीवनी से संबंधित तुलसीदास के 'रामचरितमानस' को, चंद्रगुप्त की जीवनी से
संबंधित अंतरंग के 'चंद्रचूड-चरित' को, बाण रचित हर्षवर्द्धन की जीवनी से
संबंधित ‘हर्ष-चरित' को, गौतम बुद्ध से संबंधित अश्वघोष के 'बुद्ध-चरित' को,
विक्रमादित्य षष्ट से संबंधित विल्हण के 'विक्रमाङ्देव-चरित' को या फिर
चौहानों के कृतित्व से संबंधित जयानक के 'पृथ्वीराज-चरित' को उदाहरणार्थ देखा
जा सकता है।
8. अनुचरित-किसी महापुरुष के चरित में उनसे संबंधित किसी सहनायक या नायिका की
जीवन-शैलियों पर प्रकाश डालनेवाले भाग को अनुचरित कहते हैं।
9. कथा-चरित आदि के माध्यम से प्रधान पुरुष के काल में घटित घटनाओं की
काव्यात्मक व्याख्या को कथा कहा जाता है (यत्राश्रित्य कथान्तरमति प्रसिद्धिं
निबध्यते कविभिः चरितं विचित्रमन्यत् सा च कथा चित्रलेखादिः-अमरकोष)। रुद्र
की 'त्रैलोक्यसुंदरी' कथा, दंडी की 'अवंति-सुंदरी कथा', वररुचि की 'चारुमती
कथा' तथा 'वृहत्कथा', 'शूद्रक कथा'. 'कादंबरी कथा' व 'कथासरित्सागर' आदि इसके
उदाहरण हैं। मिस्र का 'द टेल-एल-अर्मना' व अरबी सिंदबाद की कथा-शृंखलाओं को
भी इसी रूप में देखा जा सकता है।
10. परिकथा-मुख्य कथा में वर्णित प्रधान पात्र के पूर्व पुरुषों से संबंधित
घटनाओं के विवरण को परिकथा के रूप में चिह्नित किया जाता है।
11. गाथा-एक से अधिक कथाओं को उनके परिकथाओं समेत लोकभाषा में व्यक्त किए
जाने के ढंग को गाथा के नाम से पुकारा जाता है। 'महाभारत' के 'इंद्रगीत' व
'अंबरीष गाथा', परसिया (जेंद-अवेस्ता) की 'पितर-गाथा', बाइबिल की 'जेनेसिस
गाथा' एवं 'अरेबियन नाइट्स' की गाथाओं को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।
12. वंश-वृत्तांत-किसी कुल विशेष में जनमे व्यक्तियों के शृंखलाबद्ध विवरण को
वंश-वृत्तांत कहा जाता है। 'वंश-पुराण', 'हरिवंश', कालिदास की 'रघुवंश' आदि
रचनाएँ इसी श्रेणी में आती हैं।
13. अनुवंश-किसी वंश विशेष से निःसृत शाखाओं का स्वतंत्र विवरण अनुवंश कहलाता
है। उदाहरण के लिए ययाति के ज्येष्ठ पुत्र रहे ‘यदु' द्वारा पश्चिमी दक्षिणी
भारत में अलग से स्थापित की गई यदुओं की शाखाओं या फिर यहूदी इब्राहिम के
पुत्र ‘इसमाइल' द्वारा अरब-प्रांत में हिब्रुओं से अलग स्थापित की गई शाखा
(मुसलिम मान्यताओं के अनुसार इसलाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद इन्हीं के वंशज
रहे थे) का इनके मूल वंश से अलग किया जानेवाला स्वतंत्र वर्णन अनुवंश ही माना
जाएगा।
14. गोत्र-प्रवर-प्राचीनकाल में आद्य-ऋषियों द्वारा ज्ञान-विज्ञान का
परंपराओं को विकसित करने के उद्देश्य से विविध आश्रमों की स्थापना की गई थी।
विद्या के केंद्र रहे इन आश्रमों से दीक्षित होकर निकले ऋषि-पुत्रों व
शिष्यों को तथा प्रकारांतर में उनसे संस्कारित हुए उत्तराधिकारियों से प्रसूत
हुई शृंखलाओं को उसी मूल ऋषि के गोत्र से पहचाना जाता था। इस प्रकार
राजपुरुषों या प्रतिष्ठित कुलों के अलावा विद्वज्जनों तथा उनके प्रयासों से
विकसित हुई सभ्यताओं के इतिहास को ज्ञात करने का एकमात्र आधार गोत्र-प्रवर ही
सिद्ध होते रहे हैं। भार्गव, गर्ग, भारद्वाज, शांडिल्य, सावर्णे, कौशिक,
वासिष्ठ-मग-मेडिज, पौलत्स्य-पुलेसाती-पिलसगेन्यिस-पेलेस्टाइन,
अत्रिय-एट्रीयस-एट्रस्कुन, आंगिरस- आर्गिनोरिस-अंगोरियन आदि की परंपराएँ इसी
के उदाहरण हैं।
15. धर्मशास्त्र व अर्थशास्त्र-इन शास्त्रों में उल्लेखित सामाजिक, धार्मिक व
आर्थिक दृष्टिकोण रचनाकाल की परिस्थितियों व मानवीय परिवेशों को समझने तथा
इनका आकलन करने में बहुत हद तक सहयोगी होते हैं। वेदांत (ब्राह्मण, आरण्यक,
उपनिषद्, संहिता व स्मृति ग्रंथ), आगम (जैन ग्रंथ), त्रिपिटक (बौद्ध ग्रंथ),
ऐपोकृफा (यहूदी ग्रंथ), जेंद-अवेस्ता (पारसी ग्रंथ), बाइबिल (ईसाई ग्रंथ),
कुरआन (मुसलिम ग्रंथ), गुरु-ग्रंथ (सिख) आदि धर्मग्रंथों तथा नीति प्रकाशिका,
तंत्राख्यायिका, वेल्थ ऑफ नेशन (एडम स्मिथ) आदि नामकरणोंवाली अर्थशास्त्र की
पुस्तकों को इन्हीं श्रेणियों में रखा जा सकता है।
16. यात्रा-संस्मरण-विभिन्न कालखंडों में स्थान विशेष के भ्रमण पर निकले
यात्रियों द्वारा उस क्षेत्र के तात्कालिक परिवेश से संबंधित संकलित विवरणों
के आधार पर भी देश-काल की स्थितियों का खाका खींचने में सहायता मिलती हैं।
मिन आदि देशों के भ्रमण पर आधारित यवन इतिहासज्ञ हेरोडोटस, डियोडोरस व
स्ट्रैबो आदि के संस्मरणों, सिकंदर के साथ पूर्व देशों की यात्रा पर आए
मेगस्थनीज का 'इंडिका' नामक संस्मरण, भारत भ्रमण से संबंधित चीनी यात्रियों
(फाह्यान, सुंगयुन, ह्वेनसांग व इत्सिंग) तथा अरबी यात्रियों (अल-बिलादुरी,
अल-मसऊदी, सुलेमान) द्वारा संकलित संस्मरणों व गजनी के सुल्तान महमूद के साथ
भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में प्रविष्ट हुए अब्बूरिहाँ मुहम्मद इब्न
अहमद अलबरुनी के 'किताबुल हिंद' एवं तिब्बती लामा तारानाथ के कंग्युर व
तंग्युर नामक ग्रंथों आदि को इसी क्रम में रखा जा सकता है।
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