भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1 द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ - भाग 1ओम प्रकाश पांडेय
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प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....
वस्तुतः इस खंड में सृष्टि-रचना से लेकर देवयुगीन (आग्नेय/आस्ट्रीक) सभ्यता
से पूर्व के वृत्तांतों को श्रेणीबद्ध करने का प्रयास किया गया है। मानवी
उत्पत्ति से लेकर स्वयंभुव मनु की पीढ़ियों में हुए प्रचेता तक के सभी मानवी
क्रिया-कलापों के केंद्र-बिंदु भारतवर्ष के हिमालयीय उपत्यका से लेकर
सप्तसिंधु के पावन तटीय क्षेत्र ही रहे थे; किंतु पुत्रहीन प्राचेतस दक्ष की
कन्याओं का विवाह मरीचि कुलीन कश्यप से होने के कारण तदंतर प्रसूत
राजवंशावलियाँ कश्यप सागर के इर्द-गिर्द के क्षेत्रों में ही पल्लवित हुईं।
दक्ष दुहिताओं के वंशजों द्वारा कश्यप सागर के तटीय क्षेत्रों में विकसित की
गई राजनीतिक सत्ता से जिस सामाजिक व्यवस्था का उदय हुआ, कालांतर में अपने
कालजयी वर्चस्वों के कारण इन्हीं व्यवस्थाओं के गर्भ से निकली देवयुगीन
सभ्यताओं ने पूरे विश्व को शनैः-शनैः अपने आगोश में ले लिया।
प्रस्तुत अध्याय में देवयुगीन सभ्यताओं से पूर्व के घटनाक्रमों यथा जैविक
प्रस्फुटन से लेकर चार्ल्स डार्विन के विकासवादी सिद्धांत की वैज्ञानिक
विवेचना के साथ-साथ ब्रह्मा/एडम या आदम के आपसी भेद व आद्य पितरों से प्रसूत
हुई विभिन्न मानव जातियाँ तथा स्वयंभुव मनु द्वारा प्रतिपादित व्यवस्थाओं के
गर्भ से निकली प्रजापतियों व राजाओं की परंपराओं का विस्तार से वर्णन किया
गया है।
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