उपन्यास >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"नहीं राम!..."
"हां! असावधानी मेरी ही है।" राम बोले, "तुम्हारे आश्वासन के बाद भी राक्षसों के आक्रमण की संभावना और तुम्हारी आत्म-रक्षा की क्षमता पर मुझे विचार करना था। तुमने मुझे सूचना दी थी वे राक्षसों की किसी सैनिक टुकड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। तुम्हारे आश्रम से लौटने की उतावली में, उस टुकड़ी को मैंने सर्वथा भुला दिया। यह बहुत अच्छा हुआ कि वे केवल अपने साथियों को चुपके से छुड़ाकर ले गए, उन्होंने ग्राम पर आक्रमण नहीं किया; नहीं तो जाने मैं कितनी हत्याओं का दोषी होता, किंतु वह वृद्ध..." राम का स्वर भीग गया, "उसने अपने पुत्रों की निरीह हत्या का प्रतिशोध चाहा था।"
थोड़ी देर तक मन-ही-मन कुछ सोचते हुए राम शून्य को घूरते रहे और फिर बोले, "आश्रम और ग्राम की क्या स्थिति है? वहां अब किसका अधिकार है?"
"वहां पूर्ण हताशा का वातावरण है।" भीखन बोला, "राक्षस वहां रुके ही नहीं, इसलिए उनका नियंत्रण तो नहीं है; किंतु ग्रामवासियों ने भी पुनः अपना नियंत्रण स्थापित करने का कोई प्रयत्न नहीं किया।"
"तुम ऐसा करो भीखन!" राम के स्वर की सहजता कुछ लौटी, "मुखर को अपने साथ ले जाओ और अपने ग्राम तथा आश्रम में सामान्य गतिविधियों को चलाओ। मुखर संचार की व्यवस्था करेगा। तुम्हारा ग्राम, आनन्द सागर आश्रम, अनिन्द्य की बस्ती, खान का क्षेत्र तथा धर्मभृत्य का आश्रम-इन सब के बीच संचार-व्यवस्था इतनी त्वरित और सघन होनी चाहिए कि एक स्थान का पत्ता भी हिले, तो शेष स्थानों पर तत्काल सूचना हो जाए। संचार-व्यवस्था के अभाव में सारे क्षेत्र को संगठित करना बहुत कठिन होगा।" राम रुककर पुनः बोले, "यहां कुछ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। उन्हें यथाशीघ्र निबटाकर, मैं, सीता और लक्ष्मण के साथ आनन्द सागर के आश्रम में पहुंच जाऊंगा। कुछ समय तक हम सब वहीं रहेंगे और उस क्षेत्र के निर्माण का प्रयत्न करेंगे।"
भीखन भी कुछ आश्वस्त हुआ, "आपके आते ही ग्रामवासियों का आत्मविश्वास भी लौट आएगा। जल्दी आएंगे न?"
"यथाशीघ्र!" राम बोले, "तुम चलकर आश्रम में विश्राम करो। मुखर भी आ चुका होगा। उससे भी बात कर लो। मैं खेत का काम करके लौटता हूं।"
चिंतनग्रस्त भीखन बिना कुछ कहे आश्रम की ओर चल पड़ा। राम लौटकर अपने खेत में आए और उन्होंने पुनः कुदाल उठा लिया।
दोपहर को राम के आश्रम में लौटने तक, भीखन के ग्राम की चर्चा वहां पर्याप्त मात्रा में हो चुकी थी। परिणामतः मुखर को भीखन के साथ भेजने की योजना पर अधिक वाद-विवाद नहीं हुआ। दोपहर के भोजन के पश्चात् सब लोग अपने-अपने काम पर चले गए तो राम ने मुखर को भीखन के साथ भेजने की व्यवस्था की। उसे योजना और अपनी आवश्यकताएं समझाईं, कुछ ब्रह्मचारी और आवश्यकता की वस्तुएं साथ कीं। मुखर के विदा होते-होते प्रायः संध्या हो चुकी थी...
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