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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


वसंत का बयान हालाँकि टेपरिकॉर्डर में दर्ज हो रहा था, लेकिन राजीव शाह अपने नोट बनाने में व्यस्त था। हालाँकि उसे अपने सवाल का जवाब अभी भी नहीं मिल पाया था। राजीव के चेहरे पर तैर रहे हैरानी के भावों को ताड़कर वसंत मुसकराया और आगे बोला, "अब मैं तुम्हें अपने सिद्धांत का लब्बोलुआब बताता हूँ। कल्पना करो कि महासागर ठंडे हो रहे हैं और वायुमंडल को पर्याप्त मात्रा में गरमी नहीं पहुंचा पाते हैं। इससे हर जगह का तापमान कम होता जाएगा और ध्रुवीय प्रदेशों के अलावा अन्य जगहों पर भी हीरे की धूल बनने लगेगी और यह धूल क्या करेगी? धूप को छितराकर यह इसे जमीन तक पहुँचने से रोक देगी। कल्पना करो कि धूल का यह परदा धरती को आंशिक तौर पर ढक रहा है।" बात राजीव की समझ में आ गई। आगे की बात को उसी ने पूरा किया, 'फिर धरती और ठंडी हो जाएगी। महासागर भी कम गरम होंगे। हीरे की धूल बढ़ती जाएगी और फैलती जाएगी। यह धूल धूप को ज्यादा-से-ज्यादा धरती पर पहुँचने से रोक देगी और हम हिम युग की ओर बढ़ते जाएँगे। लेकिन अगर महासागर गरम हों तो यह दुश्चक्र शुरू ही नहीं होने पाएगा।"

रुको, रुको!" वसंत ने कहा, "आमतौर पर महासागरों की ऊपरी परत इतनी गरम तो होती है कि वह वायुमंडल को हीरे की धूल के खतरे से बचा सके। लेकिन अगर कुछ ऐसा हो जाए जिससे महासागरों के ठंडे होने का दुश्चक्र शुरू होने लगे तो फिर हम हिम युग से नहीं बच सकते। जैसे जब कभी कोई ज्वालामुखी फटता है तो उसके द्वारा उगले गए कण वायुमंडल में भी घुल-मिल सकते हैं। वहाँ वे धूप को सोख लेते हैं या छितराने लगते हैं। इसलिए अगर ज्वालामुखियों की गतिविधियाँ सामान्य से ज्यादा बढ़ जाएँ तो वायुमंडल में धूल का परदा बनने का खतरा बढ़ जाता है, जो धूप को गरम करने के अपने काम से रोकता है। जैसा कि मैंने कई साल पहले गौर किया था कि प्रकृति द्वारा निर्धारित सुरक्षा परत धीरे-धीरे पतली होती जा रही थी।" और अब राजीव को उस बातचीत का सिर-पैर समझ में आने लगा, जो पाँच साल पहले वाशिंगटन में हुई थी और यह भी समझ में आ गया कि वेसूवियस ज्वालामुखी के फटने की खबर सुनकर वसंत उतना चिंतित क्यों हो गया था।

और अब जबकि वसंत की आशंका सही साबित हो चुकी है तो आगे क्या होने वाला है?

'हिम युग आ गया! भारतीय वैज्ञानिक ने भविष्यवाणी की थी'-यह शीर्षक था राजीव के सनसनीखेज आलेख का। इस आलेख को भारत में खूब वाहवाही मिली। बाद में यह विदेशी समाचार एजेंसियों द्वारा पूरी दुनिया में खूब प्रचारित- प्रसारित किया गया। जल्द ही वसंत चिटनिस एक जानी-मानी हस्ती बन गए। इस तथ्य से कि उन्होंने जलवायु में विनाशकारी बदलाव की वैज्ञानिक तौर पर काफी पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी, उन्हें आम जनता के बीच पर्याप्त मान-सम्मान मिला और अपने वैज्ञानिक सहयोगियों के बीच उनकी साख भी बहुत बढ़ गई। परिणामस्वरूप भविष्य के बारे में उनकी भविष्यवाणियों को गंभीरतापूर्वक लिया जाने लगा।

लेकिन अभी भी ऊँचे ओहदों पर जमे हुए वैज्ञानिक ऐसे थे जो हिम युग की शुरुआत से सहमत नहीं थे। वे मानते थे कि यह केवल जलवायु में अस्थायी गड़बड़ी है, जो बेशक बड़े पैमाने की है और असाधारण है, लेकिन है अस्थायी, जो जल्द ही ठीक हो जाएगी। उन्होंने जनता को भरोसा दिलाया कि पुराने व अच्छे गरम दिन कुछ साल के भीतर फिर लौट आएँगे। बस, महासागरों और उनके ऊपर की हवाओं के गरम एवं ठंडे होने के चक्र में संतुलन कायम हो जाए; लेकिन ठंड से जमे देशों को विश्वास दिलाना वाकई काफी कठिन था।

संसार के विख्यात पत्रकारों के सम्मेलन में वसंत ने दोबारा सुस्ती के खिलाफ चेताया, "हो सकता है कि अगली गरमी के मौसम में कुछ बर्फ पिघल जाए, लेकिन इसे हिम युग का अंत मत मानिए, क्योंकि उसके बाद आनेवाला सर्दी का मौसम और ज्यादा ठंडा होगा। इसे टालने का तरीका भी है; लेकिन उस तरीके को जल्द-से-जल्द अमल में लाना पड़ेगा। इस चक्र को उलट देना अभी भी संभव है, पर इसमें बहुत सारा धन खर्च होगा। कृपया इसे खर्च करें।"

लेकिन इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ। अप्रैल में वसंत का मौसम आया और तापमान मामूली रूप से बढ़ा। उत्तरी गोलार्द्ध में हर जगह गरमी का मौसम चमकदार और गरम था, यहाँ तक कि दक्षिणी गोलार्द्ध में भी सर्दी का मौसम उतना ठंडा नहीं था जितना उत्तरी गोलार्द्ध में रह चुका था। इसलिए मौसम- विज्ञानी और अन्य लोग भविष्यवाणी करने लगे कि बर्फ पिघलने लगी है।

विंबल्डन के मैच अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हुए, हालाँकि खिलाड़ियों को गरम स्वेटर पहनकर खेलना पड़ा। हर कोई खुश था कि मैचों के दौरान बारिश नहीं हुई। ऑस्ट्रेलिया ने दोबारा एशेज श्रृंखला जीत ली और इस बार कोई मौसम को दोष नहीं दे सका। यू. एस. ओपन गोल्फ के मैच भी बड़े आरामदेह मौसम में खेले गए, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी। नीचे विषुवतीय प्रदेशों में भी भयंकर गरमी का नामोनिशान नहीं था; लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून अपने समय पर और पर्याप्त मात्रा में आया।

तो हमें घबराने की कतई जरूरत नहीं थी। दुनिया के सभी छोटे-बड़े देशों ने सोचा, एक बार फिर भारत की भोली जनता ने लाल फीते में बँधी अपनी नौकरशाही का अहसान माना, जो अभी भी राजधानी को दिल्ली से मुंबई ले जाने के मनसूबे बाँध रही थी। गरमी का मौसम देखकर इन मनसूबों को भी बाँधकर इस टिप्पणी के साथ ताक पर रख दिया गया कि 'अगली सूचना तक निर्णय स्थगित'।

लेकिन वसंत चिटनिस की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी। एक लौ भी बुझने से पहले तेज रोशनी के साथ भकभकाती है। गरमी का मौसम उम्मीद के मुताबिक ही था। लेकिन कोई भी उनकी बात को सुनने के मूड में नहीं था।

लेकिन एक आदमी था राजीव शाह, जिसे वसंत के तर्कों पर पूर्ण विश्वास था। एक दिन जब राजीव अपने दफ्तर में बैठा टेलीप्रिंटर पर आई खबरों की काट-छाँट कर रहा था कि तभी वसंत वहाँ पर आ धमका। उसके चेहरे से राजीव ने ताड़ लिया कि उसके पास जरूर कोई खबर है।

"लो, देखो यह टेलेक्स।" यह कहते हुए वसंत ने उसे एक छोटा सा संदेश पढ़ने के लिए दिया।

'आपके निर्देशानुसार हमने अंटार्कटिक पर जमी हुई बर्फ की पैमाइश की है। हमने पक्का पता लगाया है कि बर्फ का क्षेत्रफल बढ़ा है और समुद्र के पानी का तापमान पहले की तुलना में दो अंश गिरा है।'

"यह संदेश अंटार्कटिक में स्थापित अंतरराष्ट्रीय संस्थान से आया है।"
वसंत ने कहा, "मुझे इसी नतीजे की उम्मीद थी; लेकिन मैं इसे पक्का करना चाहता था। बदकिस्मती से मेरी आशंका सही साबित हुई।"

तुम्हारा मतलब है कि आनेवाली सर्दी में हमें और ज्यादा ठंड का सामना करना पड़ेगा?"

"बिलकुल ठीक, राजीव! तुम मेरे पूर्वाग्रहग्रस्त वैज्ञानिक सहकर्मियों से कहीं ज्यादा समझदार हो। किसे परवाह है! हम सभी इन सर्दियों में जमकर मौत की नींद सोने जा रहे हैं।"

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