आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(ओ)
ओछे नर की प्रीति की, दानी -रीति बनाय।
जैसे छीछर ताल जल, घटत - घटत घट जाय॥
ओ भविष्य के पहरेदारो, जग जननी की संतानो।
ओ धरती के राजदुलारो, वर्तमान को पहिचानो॥
ओ सविता देवता संदेशा मेरा तुम लिए जाना।
जहाँ कहीं हों गुरुवर उन तक सुनो इसे पहुँचाना।।
ओछे को सतसंग, रहिमन तजहु अँगार ज्यों।
तातो जारे अंग, सीरे पै कारो लगे॥
औरन को सिखलावते, मोहड़े परिगौ रेत।
रास बिरानी राखते, खाइनि घर का खेत॥
औरों के हित जो जीता है, औरों के हित जो मरता है।
उसका हर आँसू रामायण, प्रत्येक कर्म ही गीता है॥
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