आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
उपासनाएँ सफल क्यों नहीं होती?
उपासना देवी-देवताओं की की जाती है। स्वयं भगवान अथवा उनके समाज परिवार के देवी-देवता ही आमतौर से जन साधारण की उपासना के केन्द्र होते हैं। विश्वास यह किया जाता है कि पूजा, अर्चा, जप, स्तुति, दर्शन, भोग, प्रसाद आदि धर्म कृत्यों के माध्यम से भगवान अथवा देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है और जब वे प्रसन्न होते हैं तो उनसे इच्छानुसार वरदान प्राप्त करके अभीष्ट सुख सुविधाओं से लाभान्वित हुआ जा सकता है।
यह मान्यता कई बार सही साबित होती है कई बार गलत। प्राचीन काल के इतिहास पुराण देखने से पता चलता है कि कितने ही साधकों और तपस्वियों ने कठिन उपासनाएँ करके अद्भुत शक्तियाँ विभूतियाँ एवं उपलब्धियाँ प्राप्त की। स्वयं भी इतने समर्थ हुए कि दूसरों को अपनी साधना का एक अंश देकर वरदान आशीर्वाद से लाभान्वित कर सके। भारत ही नहीं संसार भर का पुराण ऐसी ही घटनाओं से भरा पड़ा है जिनमें चर्चा के प्रमुख पात्रों में से अधिकांश की सामर्थ्य और विशेषताएँ देव प्रदत्त थीं। ऋषियों, तपस्वियों, सन्तों के जीवन चरित्रों में- अधिकांश में ऐसे वर्णन मौजूद हैं जिनसे प्रतीत होता है कि उनमें कितनी ही अलौकिक विशेषताएँ थीं और उन्हें, उनने तप साधना के द्वारा देवताओं से अथवा सीधे भगवान से पाया था। प्रामाणिक इतिहास में भी ऐसे अगणित प्रमाण विद्यमान हैं जिनमें साधना के फलस्वरूप अनेक व्यक्तियों ने अपने व्यक्तित्वों में ऐसी विशेषताएँ उत्पन्न की जो सर्व साधारण के लिये सम्भव या सुगम नहीं होती अभी भी ऐसे व्यक्ति मौजूद हैं जो उपरोक्त तथ्य को अपने अद्भुत व्यक्तित्व या कर्तृत्व के द्वारा सही सिद्ध कर रहे हैं।
साथ-साथ यह भी देखने में आता है कि घर-बार छोड़करपूरा समय देवाराधन में लगाये हुये व्यक्ति साधना आरम्भ करने के बाद और भी अधिक गुजरी स्थिति में चले गये। न तो उनमें कोई प्रत्यक्ष विशेषता देखी गई न आत्मिक महत्ता। न उन्हें सुख प्राप्त था न शान्ति। स्वास्थ्य से लेकर सम्मान तक कोई भी सम्पदा उनके पास नहीं थी और न विवेक से आत्मबल तक कोई प्रतिभा विशेषता उपलब्ध हुई। वरन् जिस स्थिति में उन्होंने वह उपासनात्मक प्रक्रिया अपनाई पीछे उनकी स्थिति हर प्रकार बिगड़ती ही चली गई। भौतिक सुख सम्पत्ति न सही आत्मिक शान्ति और विभूति का प्रकाश मिला होता तो भी सन्तोष किया जा सकता था पर वैसा भी कुछ वे प्राप्त न कर सके।
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