आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
विराट् ब्रह्म कितना ही महान, क्यों न हो-व्यक्ति की इकाई में वह उस प्राणी की परिस्थिति मंद पड़ा हुआ लगभग उससे थोड़ा ही अच्छा बनकर रह रहा होगा। अन्तरात्मा की पुकार निश्चित रूप से ईश्वर की वाणी है पर वह हर अन्तःकरण में समान रूप में प्रबल नहीं होती। सज्जन के मस्तिष्क में मनोविकारों का एक झोंका घुस जाय तो भी उसकी अन्तरात्मा प्रबल प्रतिकार के लिये उठेगी और उसे ऐसी बुरी तरह धिक्कारेगी कि पश्चाताप ही नहीं प्रायश्चित किये बिना भी चैन न पडेगा। इसके विपरीत दूसरा व्यक्ति जो निरन्तर क्ररकर्म ही करता रहता है उसकी अन्तरात्मा यदाकदा बहत हलका सा प्रतिवाद ही करेगी और वह व्यक्ति उसे आसानी से उपेक्षित करता रहेगा। ईश्वर दोनों के हृदय में है दोनों की अन्तरात्मा की प्रकृति एक सी है-दोनों ही अपना कर्तव्य निबाहती हैं। पर दोनों की स्थिति सर्वथा भिन्न है। सज्जन ने सत्प्रवृत्तियों को पोषण देकर अपनी अन्तरात्मा को निर्मल बनाया है उसकी प्रबलता कभी शाप वरदान के चमत्कार भी प्रस्तुत कर सकती है। पर दूसरों ने अपनी आत्मा को निरन्तर पद-दलित करके उसे भूखा रखकर दुर्बल बना रखा है वह न तो प्रबल प्रतिरोध कर सकती है और न कभी उसके द्वारा ईश्वर की पुकार आदि की जाय तो उसका कुछ प्रतिफल निकल सकता है।
सर्वव्यापी, साक्षी, दृष्टा, नियन्ता, कर्ता, हर्ता, सत चित आनन्द आदि विभूतियों से सम्पन्न विराट् ब्रह्म है। देव शक्तियाँ भी अपनी सीमित परिधि के अनुरूप निखिल ब्रह्माण्ड में संव्याप्त और निर्धारित प्रयोजनों में तत्पर हैं। उन विराट् सत्ताओं की उपासना सम्भव नहीं।
उपासना के लिये प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक छोटा सा प्रतिनिधि उनका मौजूद है। साधक और तपस्वी अपनी निष्ठा के अनुरूप उसका पोषण करते-समर्थ बनाते और लाभ उठाते हैं। एक ग्वाले की गाय स्वस्थ, सुन्दर और बहुत दूध देती है दूसरे की ठीक वैसी ही होने पर भी दुबली रुग्ण और कम दूध देती है। इसका कारण उन दोनों ग्वालों का गौ सेवा में न्यूनाधिकता का होना ही है। अपने अन्तरंग में अवस्थित देवता को-भगवान को अपनी आस्था निष्ठ, पवित्रता आदि विशेषताओं के द्वारा समर्थ बनाया जाता है। इसके उपरान्त ही पूजा उपासना रूपी बाल्टी में दूध दुहने की बात बनती है।
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