आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
रामकृष्ण परमहंस की काली ने विवेकानन्द को आत्म शक्ति से सम्पन्न बनाकर उन्हें महामानवों की पंक्ति में ला खड़ा किया। दूसरे तांत्रिक, अघोरी, कापालिक, ओझा, उसी काली देवी से झाड़ फूंक के छुटपुट प्रयोजन ही पूरे कर पाते हैं। विराट् महाकाली एक है। पर रामकृष्ण परमहंस के अन्तरंग में परिपोषित काली अंश की क्षमता उनके अनुरूप थी और ओझा अघोरी लोगों की काली बहुत दुर्बल और ओछे किस्म की होती है। अर्जुन के कृष्ण की सामर्थ्य अलग थी। मीरा, सूर के कृष्ण अलग थे और रासलीला करने वालों के-पुजारियों के कृष्ण अलग हैं। आकृति प्रतिमा दोनों की एक सी हो सकती है पर सामर्थ्य में असाधारण अन्तर होगा। यह अन्तर उन साधकों की आन्तरिक स्थिति के कारण विनिर्मित हुआ होता है।
इस तथ्य को समझने में हमें असमंजस और भ्रम में पड़ना पडेगा, निराशा हाथ लगेगी और सम्भव है तब उपेक्षा ही नहीं नास्तिकता भी सामने आ खड़ी हो। उसी विधान से एक व्यक्ति आश्चर्यजनक प्रतिफल प्राप्त करता है और ठीक उसी रीति नीति को अपनाकर दूसरा व्यक्ति सर्वथा निराश असफल रहता है। इसमें न विधि विधान को दोष दिया जाना चाहिये और न देवता की निष्ठरता या भाग्य को कोसा जाना चाहिए। तथ्य यही है कि हमने अपने इष्ट देव को इतना परिपुष्ट नहीं बनाया कि वे हमारी प्रार्थना के अनुरूप उठ खड़े होने और सहायता कर सकने में समर्थ होते। द्रोपदी के कृष्ण अलग थे वे एक पुकार सुनते ही दौड़कर आये। हमारे कृष्ण अलग हैं वे लगभग लंघन में पड़े रोगी की तरह हैं पुकार सुनने और सहायता के लिये खड़े होने की सामर्थ्य उनके हाथ पैरों में है नहीं फिर वे प्रार्थना का क्या उत्तर दें।
अध्यात्म विद्या के तत्व दर्शियों ने इस तथ्य को छिपाया नहीं है। उन्होंने सदा यह कहा है कि इस विराट् ब्रह्म में जो कुछ दिव्य महान् पवित्र प्रखर है उसका एक अंश हर व्यक्ति के भीतर विद्यमान है। जो चाहे उसे ठीक तरह सँजोये सँभालने में लग सकता है और उन मणि मुक्ताओं से अपने जीवन भाण्डागार को भरा पूरा कर सकता है। उपेक्षा करने अथवा दुर्गति करने से वे निरर्थक ही बनकर रह जायेंगे। हर किसी के मस्तिष्क में गणेश विद्यमान हैं जो बुद्धि विकास की साधना करके अपने गणेश को परिपुष्ट बना लेगा वह विद्वान् बनकर अनेक विभूतियों के वरदान प्राप्त करेगा। जो अपने गणेश की जड़ों में पानी नहीं देगा उनके विनायक भगवान सूखे मूर्च्छित एक कोने में पड़े होंगे। लड्ड, खीर खिलाने, स्तोत्र पाठ करने पर भी वे कुछ सहायता न कर सकेंगे। बुद्धिमान् और विद्वान् बन सकना सम्भव न होगा। हर किसी की भुजाओं मे हनुमान का निवास है। व्यायाम करने वाले संयमी ब्रह्मचारी लोग बजरङ्गबली के भक्त प्रमाणित हो सकते हैं पर जिनने अपने असंयमी और भ्रष्ट आचरण से हनुमान जी को पीड़ित प्रताड़ित करने में कमी नहीं छोड़ी, उनका चालीसा पाठ कुछ ज्यादा कारगर नहीं होगा वे आरोग्य और बलिष्ठता का वरदान अपने रुग्ण हनुमान से कैसे प्राप्त कर सकेंगे? ।
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