आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
सद्-प्रेरणायें प्रत्येक मनुष्य के अन्त:करण में छिपी रहती हैं। दुष्प्रवृत्तियाँ भी उसी के अन्दर होती हैं। अब यह उसकी अपनी योग्यता, बुद्धिमत्ता और विवेक पर निर्भर है कि वह अपना मत देकर जिसे चाहे उसे विजयी बना दे। चित्त का मूल स्वभाव शान्त है, आत्मा आनन्दमय है जो इस अपनी मूल प्रवृत्ति को डिगाता नहीं अर्थात् सद्प्रेरणाओं में स्थिर रहता है, जगत में वही योद्धा अजेय है जिसका स्वभाव किसी भी प्राणी पदार्थ के स्वभाव से अपने शान्त स्थिर चित्त के स्वभाव को चलायमान नहीं होने देता। जगत के प्राणी और पदार्थों में इन्द्रियों के द्वारा जिसके चित्त में क्षोभ उत्पन्न होता है वह निर्बल है। उसे अपनी निर्बलता का दण्ड भी भोगना ही पड़ता है। सुख का उपभोग तो यहाँ शक्तिमान शूरमा ही करते हैं।
परमात्मा जितना कृपालु है कठोर भी उससे कम नहीं है। उसकी एक शिव शक्ति भी है जो निरन्तर ध्वंस किया करती है। ईश्वर की आज्ञाओं की जो जान बूझकर अवज्ञा करता है उसे परमात्मा की कठोरता का दण्ड भुगतना ही पड़ता है। संसार की व्यवस्था, गृह समाज, राज्य या राष्ट्र से भी सर्वोपरि है। अतः गृहपति, राज्यपाल या राष्ट्रपति की तुलना में उसके पास शक्तियाँ भी अतुल होती हैं। विश्व नियम का प्रजा में पालन कराने वाला परमात्मा बहुत बड़ा है, बड़ा कठोर, बड़ा शक्तिशाली है। गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है -
"मैं लोगों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोगों को नष्ट करने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ, इसलिये हे अर्जुन! जो यह प्रतिपक्षी सेना है वह तेरे न मारने पर भी जीवित नहीं बचेंगे। बिना युद्ध के भी इसका नाश हो जायेगा।"
- गीता ११/१३
वह परमात्मा सचमुच बड़ा शक्तिशाली, बड़ा बलवान है। उसकी अवज्ञा करके कोई बच नहीं सकता। अत: उसी के होकर रहें, उसी की आज्ञाओं का पालन करें, इसी में मनुष्य मात्र का कल्याण है।
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