आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
प्रार्थना में यही कामना जुड़ी रहनी चाहिए कि परमात्मा हमें इस लायक बनाये कि उसके सच्चे भक्त अनुयायी एवं पुत्र कहला सकने का गौरव प्राप्त करें। परमेश्वर हमें यह शक्ति प्रदान करे जिसके आधार पर भय और प्रलोभन से मुक्त होकर-विवेकसम्मत कर्त्तव्य पथ पर साहस पूर्वक चल सकें और इस मार्ग में जो भी अवरोध आवें उनकी उपेक्षा करने में अटल रह सकें। कर्मों के फल अनिवार्य हैं। अपने प्रारब्ध भोग जब उपस्थित हों तो उन्हें धैर्य पूर्वक सह सकने और प्रगति के लिये परम पुरुषार्थ करते हुए कभी निराश न होने वाली मनःस्थिति बनाये रह सकें। भगवान हमारे मन को ऐसा निर्मल बना दें कि कुकर्म की ओर प्रवृत्ति ही उत्पन्न न हो और हो भी तो उसे चरितार्थ होने का अवसर न मिल पाये। मनुष्य-जीवन की सफलता के लिये गतिशील रहने की पैरों में शक्ति बनी रहे ऐसी उच्चस्तरीय प्रार्थना को ही सच्ची प्रार्थना के रूप में पुकारा जा सकता है, जिसमें धन, सन्तान, स्वास्थ्य, सफलता आदि की याचना की गई हो और जिसमें अपने पुरुषार्थ कर्तव्य के अभिवर्धन का स्तरण न हो ऐसी प्रार्थना को याचना मात्र कहा जायेगा। ऐसी याचनाओं का सफल होना प्रायः संदिग्ध ही रहता है।
परा मनोविज्ञान वेत्ता डॉ० एमेली केडी ने लिखा है प्रार्थना. मात्र ईश्वर को धन्यवाद देने या उससे कुछ याचना करने की प्रक्रिया का नाम नहीं है। वरन् यह वह मन:स्थिति है जिससे व्यक्ति शंका और सन्देहों के जंजाल में से निकल कर श्रद्धा की भूमिका में प्रवेश करता है। अहङ्कार को खोकर समर्पण की नम्रता स्वीकार करना और उद्धत मनोविकारों को ठुकराकर परमेश्वर का नेतृत्व स्वीकार करने का नाम प्रार्थना है। जिसमें यह सङ्कल्प भी जुड़ा रहता है कि भावी जीवन परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार पवित्र और परमार्थी बनाकर जिया जायेगा। ऐसी गहन अन्तस्तल से निकली हुई प्रार्थना जिसमें आत्मपरिवर्तन की आस्था जुड़ी हुई हो भगवान का सिंहासन हिला देती है। ऐसी प्रार्थना के परिणाम ऐसे अद्भुत होते हैं जिन्हें चमत्कार कहने में कुछ हर्ज नहीं है।
चिकित्सा शास्त्र पर नोबेल पुरस्कार विजेता एवं फ्रान्स के लियो विश्व विद्यालय के प्राध्यापक डॉ० कैरल ने अपनी प्रत्येक सफलता के पीछे ईश्वर की अनुकम्पा को छिपा हुआ देखा है। वे कहते थे तुच्छ मानव-प्राणी उन्नति के उस स्तर पर नहीं पहुँच सकता जहाँ साधारण लोग आमतौर से नहीं पहुँचते। इन विशिष्ट साधन, विशिष्ट परिस्थितियों और विशेष सूझ-बूझ के पीछे उन्होंने सदा परमेश्वर का दिव्य सहयोग झाँकना देखा और सदा यही कहा-यह वाहन अन्तरंग से निकलने वाली भाव भरी प्रार्थना की प्रतिक्रिया है। उन्होंने अपनी चिकित्सा पद्धति के साथ औषधियों से अधिक प्रार्थना को महत्त्व दिया। वे हर रोगी से कहते थे सच्चे मन से प्रार्थना करोअपनी भूलों के लिए पश्चाताप और भविष्य में निर्मल जीवन जीने की प्रतिज्ञा के साथ यदि प्रार्थना करोगे तो वह जरूर सनी जायेगी। सच्चा इलाज तो पश्चाताप है और ईश्वर के चरणों में अपना समर्पण, जो ऐसा कर सकेगा वह शारीरिक ही नहीं आन्तरिक रोगों से भी छुटकारा पा जायेगा।
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