आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
ईश्वर भक्त केवल ईश्वर के शासन में रहता है और उसी के निर्देश पर चलता है मन की गुलामी उसे छोड़नी पड़ती है। जो मन का गुलाम है वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है उसे मन की गुलामी न स्वीकार हो सकती है न सहन।
साधना का प्रयोजन अपने अज्ञान और अविवेक का निराकरण करना है अपनी कामनाओं का परिशोधन और निराकरण करना है अपने कर्तृत्व में देवत्व का समावेश करना और कुत्साओं, कुण्ठाओं को जड़-मूल से उखाड़ फेंकना है। साधना एक व्यायाम प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्म-बल बढ़ाया जाता है और देवपक्ष की सत्प्रवृत्तियों का अभिवर्धन किया जाता है। इस आत्म परिष्कार के फलस्वरूप उन विभूतियों की चाभी हाथ लग जाती है जो परमेश्वर ने पहले से ही हमारे भीतर रत्न भण्डार के रूप में सुरक्षित कर दी है।
साधना हमारा दृष्टिकोण परिष्कृत कर देती है और अन्त:करण में वह प्रकाश उत्पन्न करती है, जिससे अपने लक्ष्य और कर्तव्य को समझ सकें। साधना वह शक्ति प्रदान करती है जिससे आत्मबल विकसित हो और सन्मार्ग पर चलने के लिए पैरों में अभीष्ट क्षमता रह सके। साधना साहस उपलब्ध कराती है जिसके आधार पर प्रलोभनों और आकर्षणों को दुत्कारते हुए कर्त्तव्य की चट्टान पर दृढ्ता पूर्वक अग्रसर रहा जा सके और हर विघ्न बाधा का, कष्ट-कठिनाई का धैर्य और सन्तुलन के साथ सामना किया जा सके।
साधना का वरदान 'महानता' है। साधना जितनी ही सच्ची और प्रखर होती है उतने ही हम महान बनते चले जाते हैं, तब हमें किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ता। ईश्वर से भी नहीं। तब अपने पास देने को बहुत होता है इतना अधिक कि उससे अपने को, अपने संसार को और अपने परमेश्वर को सन्तुष्ट किया जा सके।
आत्मिक प्रगति के लिए द्वार खला पडा है और उसमें प्रवेश करना अति सरल है। ईश्वर हमारे चारों ओर घिरा हुआ है। हमारे रोम-रोम में समाया हुआ है। मछली के भीतर और बाहर पानी ही पानी भरा रहता है अपने अन्दर और बाहर ब्रह्म चेतना का भरा पूरा समुद्र ही लहलहा रहा है। जो इतना समीप हो-इतना प्रचुर हो-उसे प्राप्त करने में क्या कठिनाई हो सकती है।
पिता और पुत्र का सामीप्य दुरूह कैसे हो सकता है? माता और बच्चे के सानिध्य में अवरोध क्या होगा? भाई से भाई बिछुड़ा रहे इसकी क्या आवश्यकता? पति और पत्नी के मिलने में क्या बाधा? प्रकृति-गत अवरोध इस प्रसङ्ग में रत्ती भर भी बाधक नहीं है। आत्मा और परमात्मा के बीच-पिता, पुत्र, माता, शिशु, भाईभाई और पति-पत्नि के लौकिक रिश्तों की अपेक्षा सघन, स्वच्छ और प्रखर सम्बन्ध हैं। सांसारिक रिश्तों में दो स्वतन्त्र व्यक्तियों की बात रहने से कुछ भिन्नता और पृथकता भी रह सकती है। पर आत्मा और परमात्मा तो अंश और अंशी हैं। उनमें तो अग्नि और चिनगारी जैसा ही भेद है। कमल और उसकी पंखुड़ियों-पदार्थ और उसके परमाणुओं की-सूर्य और उसकी किरणों की पृथकता आँकी भले ही जाय वस्तुतः वे तादात्म्य हैं। ईश्वर और जीव इतने ही घनिष्ठ हैंआत्मा और परमात्मा के बीच ऐसा कोई व्यवधान नहीं है जिसे दूर करने के लिए -चिन्तित, दु:खी, खिन्न, उद्विग्न या हताश होने की आवश्यकता हो यह मिलन प्रक्रिया अति सरल है। ईश्वर प्राप्ति से अधिक आसान कार्य और दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
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