आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग
इन मान्यताओं को अन्तःकरण में गहन श्रद्धा की तरह प्रतिष्ठापित कर लेने वाला व्यक्ति भक्त है। उसे ईश्वर दर्शन के रूप में किसी अवतार या देवता की काल्पनिक छवि को आँख से दीख पड़ने की बात बुद्धि उठाती ही नहीं। वह इसे दिवास्वप्र मात्र मानना और निरर्थक समझता है। उसका ईश्वर दर्शन अधिक वास्तविक और बुद्धि संगत होता है। जो अपनी विचारणा और प्रक्रिया में ईश्वर की प्रेरणा को चरितार्थ होते देखता है। जिसकी आत्मा में ईश्वर के सत्पथ पर चलने की पुकार सुनाई पड़ती है समझना चाहिए उसमें ईश्वर बोलता है-बात करता है-साथ रहता है और अपनी गोदी में उठाने का उपक्रम करता है। भक्ति की सार्थकता इसी स्थिति में है।
हमारा आपा महान् है। निस्सन्देह परमेश्वर भी महान है। पर इन दोनों सत्ताओं का मिलन और भी महान है। यदि यह सम्भव हो सके तो उसे व्यक्ति का महान सौभाग्य और ईश्वर का महान सन्तोष ही कहा जायगा। इस मिलन के कितने महान परिणाम होते हैं उनकी झाँकी इस प्रयोजन को पूरा कर सकने वाले अपने निजी जीवन में अनुभव करते हैं और अपने समीपवर्ती संसार में भी।
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