आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवाद ही क्यों ? अध्यात्मवाद ही क्यों ?श्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद ही क्यों किया जाए
महामानवों का सहयोग देवताओं का वरदान, ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिकता को व्यवहारिक जीवन में उतारने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं। मनुष्य जीवन की पाँचवी सफलता है- आत्मिक प्रगति के अवरोध का निवारण। इसी उलझन के कारण मनुष्य की पशु जीवन जीना पड़ता है और नारकीय यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। इसका समाधान भी आध्यात्मिक आदर्शों को अपना लेने के अतिरिक्त और किसी प्रकार संभव नहीं हो सकता।
यदि हम जीवन की उलझनें सुलझाना चाहते हैं, समस्याओं का हल पाना चाहते हैं तो अध्यात्म की रीति-नीति अपनाने के लिए साहस जुटाना चाहिए। इसी पथ पर चलते हुए मनुष्य जीवन का सच्चा आनंद और सच्चा लाभ लिया जा सकता है।
सुखी जीवन का उपाय एक ही है, समस्त समस्याओं का समाधान एक ही है कि हमारी आस्था बदलें, उसमें उत्कृष्टता का अधिकाधिक समावेश हो और उसका प्रतिफल व्यक्तित्व में बढ़ते हुए देवत्व के रूप में परिलक्षित हो। देव समाज के लिए स्वर्गीय परिस्थितियाँ सुरक्षित हैं। संत इमर्सन कहते थे कि "मुझे नरक में भेज दो, मैं वहीं अपने लिए स्वर्ग बना लूँगा।" उनका यह दावा मिथ्या नहीं था। उत्कृष्टतावादी के लिए सामान्य परिस्थितियों में भी स्वर्गीय सुख-शांति का सृजन कर सकना नितांत सरल, स्वाभाविक एवं संभव है। यदि हम आध्यात्मवादी रीति-नीति अपना सकें तो निश्चित रूप से वर्तमान जीवन में प्रस्तुत अनेकानेक समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
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- अध्यात्मवाद ही क्यों ?